प्रेरणास्रोत
रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाते युवा 'हिमांशु पंत', गांव में लगाया 50 लाख का इको फ्रेंडली प्लांट!
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
विगत दो तीन बरसों से सूबे के युवाओं की अपने गाँव और पहाड़ों के प्रति सोच बदली है। युवाओं नें पहाड़ मे रोजगार सृजन की उम्मीदों को जगाया है। युवा शहरों में पढ लिखकर रोजगार के लिए गांवो का रूख कर रहे है। आज ग्राउंड जीरो से ऐसे ही युवा की दास्तान जिन्होंने रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाये हैं। उस युवा का नाम है हिमांशु पंत----।
कुमाऊँ मंडल के सीमांत जनपद पिथौरागढ के बेरीनाग तहसील के बजेत (कालाशिला) गांव के 33 वर्षीय हिमांशु पंत आज सूबे के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। एकाउंटेसी में उच्च डिग्री और बीएड शिक्षा प्राप्त हिमांशु बचपन से ही कुछ अलग करना चाहते थे। अपनी माटी और पहाड़ से अगाढ प्रेम उन्हें हमेशा अपने गाँव के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता।
-- इको फ्रेंडली बैग प्लांट के जरिए मिली मंजिल!
पढ़ाई करने के बाद हिमांशु नें रोजगार के लिए लंबा संघर्ष किया। शहरों की खाक छानी। आखिरकार हिमांशु के मन में विचार आया कि दूसरो के यहाँ नौकरी करने से अच्छा क्यों न अपना काम किया जाए। एक दोस्त ने इको फ्रेंडली बैग तैयार करने के प्लांट का प्रोजेक्ट दिखाया तो हिमांशु को ये बेहद पंसद आया और इस पर काम करने का मन बना लिया और अपने गांव में इंको फ्रेंडली बैग तैयार करने का प्लांट लगाया। हिमांशु ने अपने प्लांट को ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग नाम दिया। प्लांट में डी-कट, यू-कट बैग के साथ शॉपिंग में प्रयोग होने वाले लूप (फीते) वाले बैग भी तैयार होते हैं। ये बैग पूरी तरह से पाॅलीथीन फ्री है। जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचता है।
ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग बाजार में धूम, बाजार में बढ़ी मांग!
पांच माह पहले महज दस दुकानों से शुरू हुआ ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग आज बाजार में धूम मचा रहा है जिस कारण शहरों से मांग बढी है। बकौल हिमांशु शुरू शुरू में केवल बेरीनाग बाजार से ही मांग आती थी। लेकिन अब पिथौरागढ़, बागेश्वर, गरुड़, अल्मोड़ा, चंपावत के साथ साथ हल्द्वानी, उधमसिंहनगर से भी बैग की भारी डिमांड आ रही है। लोग हिमांशु के ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग के मुरीद बन गये हैं।
गाँव मे रोजगार सृजन, 5 महीने में 8 युवाओं को गांव में ही मिला रोजगार !
हिमांशु के ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग प्लांट लगने के महज पाँच महीने में ही आसपास के गांवों के आठ युवाओं को रोजगार मिल रहा है जबकि अगले छह माह में वह 25 से 30 युवाओं को इससे रोजगार मिलने की उम्मीद है। प्लांट में काम करने वाले युवाओं को छह हजार से 16 हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। आपरेटर को छोड़ शेष आठ युवक स्थानीय हैं। कम वेतन वाले युवाओं से पार्ट टाइम काम भी किया जाता है, जिससे उन्हे अच्छा खासा मुनाफा भी होता है।
रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगें!
सीमांत के अपने गाँव में हिमांशु की ये पहल लोगों को भाने लखी है। लोग अब वापस अपने गाँवों में आने का मन बना रहें हैं जिस कारण से रोजीरोटी के खातिर शहर पलायन कर गए युवा वापस अपनी माटी लौटना चाहते हैं। परिणामस्वरूप रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीद भी जगी है।
परिवार ने दिया हौसला!
हिमांशु बताते हैं प्लांट लगाने से पहले मन में सवाल था कि काम चलेगा कि नहीं। पिता और छोटे भाइयों ने प्रोत्साहित किया। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत आवेदन करने पर 25 लाख का लोन स्वीकृत हो गया। करीब इतनी ही राशि पिता नारायण पंत के (अस्पताल से सुपरवाइजर पद से) रिटायर्ड होने पर मिली रकम से मिलाकर जनवरी में प्लांट व प्रिंटिंग मशीन लगा लिया।
ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग प्लांट के बाद खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगायेंगे!
हिमांशु पंत नें बताया बहुत जल्दी वे अपने गाँव मे खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगायेंगे ताकि गाँव मे रोजगार सृजन बढ़े और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र मे राहें खुले और पहाड़ी उत्पादों को बाजार मिले।
हिमांशु पंत से रिवर्स माइग्रेशन पर हुई लंबी गुफ्तगु पर वे कहते है कि हमें पहाडो और रोजगार को लेकर अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। पहाडो में रहकर बहुत कुछ किया जा सकता है। खासतौर पर रोजगार सृजन को लेकर। आवश्यकता है खुद पर भरोसा करने की। अभी तो एक छोटा प्रयास किया है। मंजिल बहुत दूर है। मैं चाहता हूँ कि पहाड़ के गांवो में पसरा सन्नाटा टूट जाय और गाँव में रोजगार मिले।
वास्तव मे देखा जाय तो हिमांशु पंत जैसे युवा नयी पीढ़ी के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है कि पहाड़ों मे रहकर भी रोजगार सृजन किया जा सकता है। हिमांशु पंत नें रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाये हैं। उम्मीद की जानी चाहिए की उनकी ये मुहिम रूकेगी नहीं। इस लेख के जरिए हिमांशु पंत के हौंसलो और जज्बे को सैल्यूट।
रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाते युवा 'हिमांशु पंत', गांव में लगाया 50 लाख का इको फ्रेंडली प्लांट!
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
विगत दो तीन बरसों से सूबे के युवाओं की अपने गाँव और पहाड़ों के प्रति सोच बदली है। युवाओं नें पहाड़ मे रोजगार सृजन की उम्मीदों को जगाया है। युवा शहरों में पढ लिखकर रोजगार के लिए गांवो का रूख कर रहे है। आज ग्राउंड जीरो से ऐसे ही युवा की दास्तान जिन्होंने रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाये हैं। उस युवा का नाम है हिमांशु पंत----।
कुमाऊँ मंडल के सीमांत जनपद पिथौरागढ के बेरीनाग तहसील के बजेत (कालाशिला) गांव के 33 वर्षीय हिमांशु पंत आज सूबे के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। एकाउंटेसी में उच्च डिग्री और बीएड शिक्षा प्राप्त हिमांशु बचपन से ही कुछ अलग करना चाहते थे। अपनी माटी और पहाड़ से अगाढ प्रेम उन्हें हमेशा अपने गाँव के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता।
-- इको फ्रेंडली बैग प्लांट के जरिए मिली मंजिल!
पढ़ाई करने के बाद हिमांशु नें रोजगार के लिए लंबा संघर्ष किया। शहरों की खाक छानी। आखिरकार हिमांशु के मन में विचार आया कि दूसरो के यहाँ नौकरी करने से अच्छा क्यों न अपना काम किया जाए। एक दोस्त ने इको फ्रेंडली बैग तैयार करने के प्लांट का प्रोजेक्ट दिखाया तो हिमांशु को ये बेहद पंसद आया और इस पर काम करने का मन बना लिया और अपने गांव में इंको फ्रेंडली बैग तैयार करने का प्लांट लगाया। हिमांशु ने अपने प्लांट को ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग नाम दिया। प्लांट में डी-कट, यू-कट बैग के साथ शॉपिंग में प्रयोग होने वाले लूप (फीते) वाले बैग भी तैयार होते हैं। ये बैग पूरी तरह से पाॅलीथीन फ्री है। जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचता है।
ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग बाजार में धूम, बाजार में बढ़ी मांग!
पांच माह पहले महज दस दुकानों से शुरू हुआ ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग आज बाजार में धूम मचा रहा है जिस कारण शहरों से मांग बढी है। बकौल हिमांशु शुरू शुरू में केवल बेरीनाग बाजार से ही मांग आती थी। लेकिन अब पिथौरागढ़, बागेश्वर, गरुड़, अल्मोड़ा, चंपावत के साथ साथ हल्द्वानी, उधमसिंहनगर से भी बैग की भारी डिमांड आ रही है। लोग हिमांशु के ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग के मुरीद बन गये हैं।
गाँव मे रोजगार सृजन, 5 महीने में 8 युवाओं को गांव में ही मिला रोजगार !
हिमांशु के ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग प्लांट लगने के महज पाँच महीने में ही आसपास के गांवों के आठ युवाओं को रोजगार मिल रहा है जबकि अगले छह माह में वह 25 से 30 युवाओं को इससे रोजगार मिलने की उम्मीद है। प्लांट में काम करने वाले युवाओं को छह हजार से 16 हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। आपरेटर को छोड़ शेष आठ युवक स्थानीय हैं। कम वेतन वाले युवाओं से पार्ट टाइम काम भी किया जाता है, जिससे उन्हे अच्छा खासा मुनाफा भी होता है।
रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगें!
सीमांत के अपने गाँव में हिमांशु की ये पहल लोगों को भाने लखी है। लोग अब वापस अपने गाँवों में आने का मन बना रहें हैं जिस कारण से रोजीरोटी के खातिर शहर पलायन कर गए युवा वापस अपनी माटी लौटना चाहते हैं। परिणामस्वरूप रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीद भी जगी है।
परिवार ने दिया हौसला!
हिमांशु बताते हैं प्लांट लगाने से पहले मन में सवाल था कि काम चलेगा कि नहीं। पिता और छोटे भाइयों ने प्रोत्साहित किया। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत आवेदन करने पर 25 लाख का लोन स्वीकृत हो गया। करीब इतनी ही राशि पिता नारायण पंत के (अस्पताल से सुपरवाइजर पद से) रिटायर्ड होने पर मिली रकम से मिलाकर जनवरी में प्लांट व प्रिंटिंग मशीन लगा लिया।
ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग प्लांट के बाद खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगायेंगे!
हिमांशु पंत नें बताया बहुत जल्दी वे अपने गाँव मे खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगायेंगे ताकि गाँव मे रोजगार सृजन बढ़े और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र मे राहें खुले और पहाड़ी उत्पादों को बाजार मिले।
हिमांशु पंत से रिवर्स माइग्रेशन पर हुई लंबी गुफ्तगु पर वे कहते है कि हमें पहाडो और रोजगार को लेकर अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। पहाडो में रहकर बहुत कुछ किया जा सकता है। खासतौर पर रोजगार सृजन को लेकर। आवश्यकता है खुद पर भरोसा करने की। अभी तो एक छोटा प्रयास किया है। मंजिल बहुत दूर है। मैं चाहता हूँ कि पहाड़ के गांवो में पसरा सन्नाटा टूट जाय और गाँव में रोजगार मिले।
वास्तव मे देखा जाय तो हिमांशु पंत जैसे युवा नयी पीढ़ी के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है कि पहाड़ों मे रहकर भी रोजगार सृजन किया जा सकता है। हिमांशु पंत नें रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाये हैं। उम्मीद की जानी चाहिए की उनकी ये मुहिम रूकेगी नहीं। इस लेख के जरिए हिमांशु पंत के हौंसलो और जज्बे को सैल्यूट।
No comments:
Post a Comment