Sunday, July 15, 2018

दून में पैर पसारता अवैध नशे का कारोबार 



मनोज कुमार / एच एस सैनी
प्रदेश की राजधानी देहरादून में अवैध नशे का कारोबार बेरोकटोक फलता फूलता  जा रहा है ।जिसकी गिरफ़्त में अधिकतर यँहा के स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाली युवा पीढी है। जिनके पास    ऊंची कीमतों पर जानलेवा नशे की सामग्री आसानी से पहुंच रही है । नशे की लत के आदी हो चुके छात्र छात्राएं किसी भी कीमत पर नशे की सामग्री को खरीद रहे हैं ।जिसे पूरा करने के लिए अनेक छात्र छोटा मोटा जुर्म करने से भी नही हिचकते ।नशे की बुरी लत के शिकार हो चुके अधिकतर युवा वर्ग अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए इसी अवैध कारोबार के दलदल में फंस गए हैं ।
उत्तराखंड की राजधानी पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात रहा है ।यँहा के स्कूलो में देश की अनेक  जानी मानी हस्तियॉ ने शिक्षा ग्रहण कर नाम रोशन किया । वर्तमान में उत्तराखण्ड बनने के पश्चात् देहरादून एवम् इसके आस पास अनेक कॉलेजो का निर्माण हुआ ।जँहा वर्तमान में बाहरी राज्यों के हजारो छात्र उच्च शिक्षा के लिए देहरादून का रुख करतें हैं ।परंतु यह उनका दुर्भाग्य है कि अधिकतर छात्र यँहा पहुंचते ही नशे के सौदागरों के चंगुल में फंस जाते है ।और उनका सुनहरा भविष्य नशे के गर्त में चला जाता है ।

देहरादून के इस नशे के अवैध कारोबार का संचालन उत्तराखण्ड से सटे राज्यो हिमांचल प्रदेश ,हरियाणा ,पंजाब एवम् उत्तरप्रदेश से किया जा रहा है ।इन प्रदेशो से नशे का कारोबार संचालित कर रहे आकाओ के गुर्गे पुलिस चेक पोस्टों से आसानी से नशे की सामग्री देहरादून तक पहुंचा रहे हैं ।जिनके द्वारा बड़ी बड़ी लक्जरी गाडीयो का राजनीतिक दलो के झंडे ,प्लेट लगा कर इस्तेमाल किया जा रहा है ।जिन पर पुलिस भी हाथ डालने से कतराती है ।इसके अतिरिक्त बाहरी राज्यो से आने वाली राज्य परिवहन निगम की बसें भी नशे की सामग्री के तस्करी का जरिया बनी हुई है ।जिसमे कुछ बसों के चालक परिचालक भी संलिप्त हैं ।जो इस तस्करी के खेल में शामिल हैं ।
तस्करी द्वारा देहरादून पहुंचने पर नशे की सामग्री को होटलो ,रेस्टोरेंट एवम् मसूरी रोड पर बने टी पोइटो तक पहुंचा दिया जाता है ।जँहा शाम ढलते ही नशे के सेवन का दौर शुरू हो जाता है ।जो देर रात तक चलता है ।नशे की इस सामग्री में बाहरी राज्यो से लाई हुई शराब ,अफीम ,चरस ,गांजे, और सुल्फे की सिगरेट शामिल होती हैं ।अनेक हुक्का बार तो खुलेआम इन जानलेवा सामग्री को परोसते हैं ।जिन पर पुलिस का कोई नियंत्रण नही है ।यह सब पुलिस की नियमित चेकिंग अभियान के दौरान ही चलता रहता है ।नशे के अवैध कारोबार में राजधानी के कुछ दवा संचालक भी पीछे नही हैं ।इनके द्वारा मेडिकल की आड़ में छात्रो को नशे के इंजेक्शन और गोलियां ऊँची कीमतों पर उपलब्ध कराईं जा रही है ।जबकि सरकार ने इन दवाओ के खरीद फरोख्त पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया हुआ है ।
शाम ढलते ही प्रेम नगर ,बल्लूपुर चौक ,आई एस बीटी ,ओल्ड मसूरी रोड ,राजपुर रोड ,सेलाकुई ,कारगी चौक में अवैध नशे के कारोबारियों के गिरोह सक्रिय हो जाते हैं ।जो आसानी से छात्रो को अपना शिकार बनाते हैं ।ऐसा नही है की पुलिस प्रशासन को दून में फैल रहे इस कारोबार की खबर नही है ।इस नशे केअवैध कारोबार को उच्च स्तर का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है ।इस लिए पुलिस भी इन पर हाथ डालने से कतराती है ।और इनकी तरफ से आँखे मूँद रखी हैं ।
अनेक बार पुलिस द्वारा नशे के अवैध करोबार को रोकने के लिए खाना पूर्ति के लिए अभियान चलाया जाता है जो नाकम साबित होता है ।कभी कभार कोई हादसा होने पर पुलिस द्वारा जो अभियान चलाया जाता है वह भी नशे के अवैध कारोबार पर लगाम नही लगा पाता है ।इसलिए देहरादून के अधिकाँश छात्र नशे के आग़ोश में समाते जा रहे हैं ।
नवल खाली

भरतु की ब्वारी का काल्पनिक चरित्र गढ़, दिखलाई पहाड़ की हकीकत और यथार्थ। देश ही नहीं विदेश में भी मची धूम!

ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!

पहाड़ लोगों के लिए आज भी पहाड़ लगता है। लेकिन इसी पहाड़ में सैकडो बहुमूल्य औषधियों का खजाना छुपा है। वेदों की रचना इसी पहाड़ में हुई है। आज ग्राउंड जीरो से इसी पहाड़ की कंदराओ में जन्मे, पले, बढ़े, और सृजन के नये आयामों को छूते शख्सियत युवा नवल खाली से आपको रूबरू करवाते है। जिनकी भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र नें पहाड़ के घर से लेकर सात समंदर पार तक तहलका मचाया हुआ है।

सीमांत जनपद चमोली में दानी कर्ण की नगरी और अलकनंदा व पिंडर नदी के संगम से दांयिनी ओर विस्तारित नागपुर परगने में पोखरी विकासखंड के खाल गांव निवासी नवल खाली बचपन से ही बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। गाँव से दिखाई देनी वाली हिमालय की श्रृंखलाबद्ध हिमाच्छदित नयनाभिराम चोटियों नें नवल खाली को सदा अपनी ओर आकर्षित किया। मध्य हिमालय में मौजूद अपने बेहद खूबसूरत गाँव खाल से हर मौसम में दिखाई देना वाले प्राकृतिक सौंदर्य और कल कल बहती अलकनंदा नें नवल को हमेशा पहाड़ और प्रकृति से बेपनाह प्यार करने को प्रेरित किया।

पहाड़ की इन्हीं कंदराओ में पढ़ाई लिखाई की और गाँव के दूसरे युवाओं से इतर अपने भविष्य की राह खुद तय की और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता में हाथ अजमाया। वर्ष 2007 से 10 तक इलेक्ट्रॉनिक ,प्रिंट व विभिन्न पत्र पत्रिकाओं से जरिये नकली राजधानी देहरादून में पत्रकारिता की शुरुवात की जिसके बाद 2010 से अभी तक वे दैनिक अखबार अमर उजाला में गढ़वाल हेड मीडिया सॉल्यूशन के पद पर कार्यरत हैं।

बालपन में ही सृजन की नींव।

नवल खाली को लिखने का शौक बचपन से ही था। या यों कहिए की सृजन की नींव बचपन में ही पड गयी थी। स्कूल से लेकर स्कूल की छुट्टियों के दौरान नवल गाँव में कभी गाय चराने जंगल जाया करते थे तो वो कुछ न कुछ लिखा करते थे और दोस्तों को अपना लिखा पढ़कर सुनाते थे। हर कोई नवल की तारीफ करता। फिर स्कूल की पढाई के बाद एक दौर आया जब कैरियर बनाने की दिशा में इन चीजों के लिए वक्त ही नही मिला।

पहाड़ से मिला हौंसला।

सदा पहाड़ से प्यार करने वाले नवल खाली को जब पुनः अपने पहाड़ में आने का मौका मिला तो उन्होंने पूरे पहाड़ की खाक छान डाली और पहाड़ को एक विद्यार्थी की तरह समझा, जाना और महसूस किया। इस दौरान नवल का कई लोगों से मिलते रहना, उनकी मुश्किलें ...और उनकी खुशी जानने की कोशिश करना दिनचर्या में शामिल थी। वे अक्सर जमीन से जुड़े किरदारों को यहाँ वहां ढूंढते थे जो धीरे धीरे नवल का शगल बन गया था। नवल उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ दोनो मंडलों की अधिकांश जगहों के भमण कर चुकें हैं। इसलिए वे पहाड़ को बेहद करीब से भी जान पाये।

जीवन के अनुभवों और पहाड़ की पीड़ा से उपजा काल्पनिक चरित्र 'भरतु की ब्वारी'।

नवल खाली नें भरतु की ब्वारी से पहले बीरू, धरमु, हरि..आदि ऐसे कई किरदारों पर शार्ट स्टोरी लिखी। जिनमे पलायन, रिवर्स पलायन, रोजगार व रोजमर्रा के खट्टे मीठे किस्से शामिल हैं। उसके बाद भरतु की ब्वारी नामक पात्र भी लगातार भ्रमण करके और सामाजिक परिवेश पर अध्ययन के उपरांत उपजा। भले ही कहानी काल्पनिक हो मगर पाठको को वो अपने किरदार के आस पास नजर आता है। जिससे भरतु का काल्पनिक चरित्र यथार्थ नजर आता है।

पहाड़ के गांव, बाजार से लेकर सात समंदर पार तक काल्पनिक चरित्र भरतु की ब्वारी की धूम।

चाचा चौधरी के किस्से, डायमंड पाॅकेट बुक्स, चंद्रकांता सीरियल के बाद यदि पहाड़ में सबसे ज्यादा गढा हुआ काल्पनिक चरित्र यदि लोगों के मध्य प्रसिद्ध हुआ तो वो है भरतु की ब्वारी का ..। गाँव के पनघट, खेत, खलियान, शादी ब्याह, छोटे शहर, बड़े शहर, स्कूल, ऑफिस, बस, से लेकर सात संमदर पार तक हर किसी कि जुबान पर भरतु की ब्वारी की कहानी की धूम मची हुई है। हर कोई एक के बाद एक अगली कडी के इंतजार में रहता है। आज भरतु की ब्वारी डिजिटल प्लेटफार्म वटसप यूनिवर्सिटी और फेसबुक यूनिवर्सिटी में तो सबसे ज्यादा ट्रेंड करने वाला काल्पनिक चरित्र बन चुकी है.....।

भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र के जरिए दिखलाई पहाड़ की हकीकत। दिया नया संदेश।

युवा लेखक नवल खाली नें भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र के एक नहीं बल्कि 50 सीरिज अब तक लोगों के मध्य प्रस्तुत किए है। जिसमें पहाड़ के लोकजीवन की हकीकत से लेकर यहाँ की समस्या, रोजागार, पलायन, रिवर्स माइग्रेशन, बेरोजगारी सहित विभिन्न मुद्दों को बखूबी से आखरों में पिरोकर बहुत सुंदर तरीके से लोगों के सामने रखा और हर एक कहानी में कुछ न कुछ संदेश दिया है।

भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र लोगों को लगी हकीकत। 

नवल खाली ने भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र को हर कहानी में इतने बेहतरीन ढंग से गढा है कि कई लोगों को ये अपनी खुद की कहानी लगती है।

कई बार तो भरतु नाम के कई लोगों ने बकायदा नवल को मेसेज करके बुरा भला भी कहा एक भरतु ने तो यहां तक  कहा कि तुमने मेरी ही कहानी लिख दी है, सच बता मेरे गाँव के किस आदमी ने तुम्हे मेरे बारे में बताया । 

नवल को उस भरतु की बात पर बड़ी हंसी भी आई और आश्चर्य भी। वहीं नवल को कई फौजी भाई लगातार नया लिखने की प्रेरणा भी देते हैं जबकि कई लोगों की नाराजगी भी है कि वे फौजियों को बदनाम कर रहे हैं और उनकी बीबियों का उपहास कर रहे हैं। वे कई बार गुरुजी पर कहानी लिख चुके है और उन्हें गुरु लोगों की भी नाराजगी झेलनी पड़ी। वहीं इस पर नवल खाली का कहना है कि मैंने कभी किसी प्रोफेशन को केंद्र में रखते हुए ये सीरीज नही बुनी है। जो महसूस किया, देखा, समझा और जाना वही रच दिया।

पहाड़ को जिया ही नहीं आखरों में भी पिरोया ताकि लोग वापस अपने पहाड़ लौट आये!

भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र को लेकर नवल खाली से लंबी गुफ्तगु हुई। बकौल नवल खाली मेरा मुख्य मकसद समसामयिक विषयों, पलायन, रोजगार, विलुप्त होती संस्कृति, परम्परा और पहाड़ी डिक्सनरी से दूर होते शब्दों से पाठको को रूबरू करवाना है और यदि एक व्यंग व हँसी के माध्यम से ये मैं कर पाऊं तो मेरे लिखने की सार्थकता होगी। मेरी अभी तक की लिखी कहानियों को जल्द पाठक पुस्तक व ई-बुक के माध्यम से भी पढ़ पाएंगे। पहाड़ के प्रति अपने प्यार को मैं शब्दों में बयां नही कर सकता।काश मेरे पास कोई जादू की छड़ी होती तो मैं पहाड़ों की समस्याओं को खत्म कर पाता। सब हो सकता है पर सरकारो का पहाड़ो के प्रति उदासीन रवैया अलग राज्य बनने के 18 साल बाद भी बदस्तूर जारी है। जो कि बेहद दुःखद है। यदि पहाडी राज्य राजधानी गैरसैंण होगी तो निःसन्देह पहाड़ों के दिन बहुरेंगे और लोग वापस पहाड की ओर लौटेंगे।

वास्तव मे देखा जाय तो नवल खाली नें भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र के जरिए नये आयाम स्थापित किये हैं। उन्होंने सृजन की एक नयी लकीर खींची है। लोग बहुत बेसब्री से उनकी सीरिज का इंतजार करते हैं और खूब पसंद भी करते है। पहाड़ के गांव से लेकर सात समंदर पार तक उनके काल्पनिक चरित्र भरतु की ब्वारी की धूम मची हुई है। डिजिटल युग और वटसप, फेसबुक यूनिवर्सिटी के इस दौर में जहाँ हर कोई काॅपी पेस्ट के जरिए अपनी अभिव्यक्ति का आदान प्रदान कर रहा है वहीं नवल खाली की बेहतरीन सृजनात्मक पहल नें उन्हें नया मुकाम दिलाया है।





इस आलेख के जरिये युवा लेखक नवल खाली को उनके सृजनात्मक पहल और भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र के 50 एपीसोड पूरे होने पर एक छोटी सी भेंट। आशा और उम्मीद करते है कि उनकी ये सृजनात्मक पहल नित नयें नयें प्रतिमानों को छूओगे।

ग्राउंड जीरो से संजय चौहान।

प्रेरणास्रोत

रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाते युवा 'हिमांशु पंत', गांव में लगाया 50 लाख का इको फ्रेंडली प्लांट! 
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
विगत दो तीन बरसों से सूबे के युवाओं की अपने गाँव और पहाड़ों के प्रति सोच बदली है। युवाओं नें पहाड़ मे रोजगार सृजन की उम्मीदों को जगाया है। युवा शहरों में पढ लिखकर रोजगार के लिए गांवो का रूख कर रहे है। आज ग्राउंड जीरो से ऐसे ही युवा की दास्तान जिन्होंने रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाये हैं। उस युवा का नाम है हिमांशु पंत----।
कुमाऊँ मंडल के सीमांत जनपद पिथौरागढ के बेरीनाग तहसील के बजेत (कालाशिला) गांव के 33 वर्षीय हिमांशु पंत आज सूबे के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। एकाउंटेसी में उच्च डिग्री और बीएड शिक्षा प्राप्त हिमांशु बचपन से ही कुछ अलग करना चाहते थे। अपनी माटी और पहाड़ से अगाढ प्रेम उन्हें हमेशा अपने गाँव के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता।

-- इको फ्रेंडली बैग प्लांट के जरिए मिली मंजिल! 

पढ़ाई करने के बाद हिमांशु नें रोजगार के लिए लंबा संघर्ष किया। शहरों की खाक छानी। आखिरकार हिमांशु के मन में विचार आया कि दूसरो के यहाँ नौकरी करने से अच्छा क्यों न अपना काम किया जाए। एक दोस्त ने इको फ्रेंडली बैग तैयार करने के प्लांट का प्रोजेक्ट दिखाया तो हिमांशु को ये बेहद पंसद आया और इस पर काम करने का मन बना लिया और अपने गांव में इंको फ्रेंडली बैग तैयार करने का प्लांट लगाया। हिमांशु ने अपने प्लांट को ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग नाम दिया। प्लांट में डी-कट, यू-कट बैग के साथ शॉपिंग में प्रयोग होने वाले लूप (फीते) वाले बैग भी तैयार होते हैं। ये बैग पूरी तरह से पाॅलीथीन फ्री है। जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचता है।

ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग बाजार में धूम, बाजार में बढ़ी मांग!

पांच माह पहले महज दस दुकानों से शुरू हुआ ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग आज बाजार में धूम मचा रहा है जिस कारण शहरों से मांग बढी है। बकौल हिमांशु शुरू  शुरू में केवल बेरीनाग बाजार से ही मांग आती थी। लेकिन अब पिथौरागढ़, बागेश्वर, गरुड़, अल्मोड़ा, चंपावत के साथ साथ हल्द्वानी, उधमसिंहनगर से भी बैग की भारी डिमांड आ रही है। लोग हिमांशु के ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग के मुरीद बन गये हैं।

गाँव मे रोजगार सृजन, 5 महीने में 8 युवाओं को गांव में ही मिला रोजगार !

हिमांशु के ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग प्लांट लगने के महज पाँच महीने में ही आसपास के गांवों के आठ युवाओं को रोजगार मिल रहा है जबकि अगले छह माह में वह 25 से 30 युवाओं को इससे रोजगार मिलने की उम्मीद है। प्लांट में काम करने वाले युवाओं को छह हजार से 16 हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। आपरेटर को छोड़ शेष आठ युवक स्थानीय हैं। कम वेतन वाले युवाओं से पार्ट टाइम काम भी किया जाता है, जिससे उन्हे अच्छा खासा मुनाफा भी होता है।

रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगें! 

सीमांत के अपने गाँव में हिमांशु की ये पहल लोगों को भाने लखी है। लोग अब वापस अपने गाँवों में आने का मन बना रहें हैं जिस कारण से रोजीरोटी के खातिर शहर पलायन कर गए युवा वापस अपनी माटी लौटना चाहते हैं। परिणामस्वरूप रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीद भी जगी है।

परिवार ने दिया हौसला!

हिमांशु बताते हैं प्लांट लगाने से पहले मन में सवाल था कि काम चलेगा कि नहीं। पिता और छोटे भाइयों ने प्रोत्साहित किया। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत आवेदन करने पर 25 लाख का लोन स्वीकृत हो गया। करीब इतनी ही राशि पिता नारायण पंत के (अस्पताल से सुपरवाइजर पद से) रिटायर्ड होने पर मिली रकम से मिलाकर जनवरी में प्लांट व प्रिंटिंग मशीन लगा लिया।

ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग प्लांट के बाद खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगायेंगे!

हिमांशु पंत नें बताया बहुत जल्दी वे अपने गाँव मे खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगायेंगे ताकि गाँव मे रोजगार सृजन बढ़े और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र मे राहें खुले और पहाड़ी उत्पादों को बाजार मिले।

हिमांशु पंत से रिवर्स माइग्रेशन पर हुई लंबी गुफ्तगु पर वे कहते है कि हमें पहाडो और रोजगार को लेकर अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। पहाडो में रहकर बहुत कुछ किया जा सकता है। खासतौर पर रोजगार सृजन को लेकर। आवश्यकता है खुद पर भरोसा करने की। अभी तो एक छोटा प्रयास किया है। मंजिल बहुत दूर है। मैं चाहता हूँ कि पहाड़ के गांवो में पसरा सन्नाटा टूट जाय और गाँव में रोजगार मिले।

वास्तव मे देखा जाय तो हिमांशु पंत जैसे युवा नयी पीढ़ी के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है कि पहाड़ों मे रहकर भी रोजगार सृजन किया जा सकता है। हिमांशु पंत नें रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाये हैं। उम्मीद की जानी चाहिए की उनकी ये मुहिम रूकेगी नहीं। इस लेख के जरिए हिमांशु पंत के हौंसलो और जज्बे को सैल्यूट।
 राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सदस्य .डा. स्वराज विद्वान स्वस्थ होकर घर लौटी

डा. विद्वान के शीघ्र स्वस्थ्य होने के लिए देश व प्रदेश भर में मंदिरों, मजिस्द, चर्च, गुरूद्वारों में देषवासियों की ओर से दुआ मांगी गई थी। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सदस्य  डा. स्वराज विद्वान ने कहा कि डाक्टरों एवं देशवासियों की दुवाओं से मुझे नया जीवन मिला है। दुःखद घड़ी में देशवासियों के इस अलौकिक प्रेम से ही आज मैं आपके बीच में हूं। उन्होंने सभी देशवासियों का तह दिल से हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सदस्य सुश्री विद्वान उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशीमें शासकीय भ्रमण कार्यक्रम में थी। 31 मई 2018 को तहसील बड़कोट में जनता की समस्या को सुनने के बाद जनता को सम्बोधित करते-करते उनके सिर में तेज दर्द हुआ जिसके चलते उन्हें तत्काल वहां उपस्थित अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के द्वारा राजकीय अस्पताल बड़कोट पंहुचाया गया। जहां उन्हें प्राथमिक उपचार के बाद मैक्स अस्पताल देहरादून के लिए रैफर किया गया। जहां राज्य सरकार एवं ओएनजीसी की प्रीती पंत के नेतृत्व में उनकी पूरी टीम ने तत्काल ईलाज के लिए सीनियर डाक्टरों से बात की। मैक्स अस्पताल देहरादून में जांच करने के बाद पता चला कि मा. सदस्या को ब्रेन हेमरेज हुआ है। आईसीयू में भर्ती करने के बाद अगले दिन 1 जून को प्रातः डाक्टरों की टीम ने हायर सेंटर एम्स दिल्ली के लिए रैफर किया। राज्य सरकार ने तत्काल कार्यवाही करते हुए आपातकालीन सेवा से मा. सदस्या को दिल्ली पंहुचाया। डा. विद्वान ने अपने गृह राज्य के मा. मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, वित्त एवं पेयजल मंत्री प्रकाश पंत, प्रदेश अध्यक्ष भाजपा अजय भट्ट, मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, अपर सचिव डा. रणवीर सिह, डीजीपी अनिल रतूड़ी का हार्दिक दिल से आभार प्रकट किया।

दिल्ली एम्स में 1 जून से 10 जुलाई तक  राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सदस्य मा. डा. विद्वान का ब्रेन हेमरेज का सफल ईलाज एच.ओ.डी.डा.श्री काले एवं डा. कामेष्वर प्रसाद की देख-रेख में हुआ। 10 जुलाई को डाक्टरों की टीम के द्वारा सुश्री विद्वान के ब्रेन हेमरेज की अंतिम जांच की गई जिसमें वे स्वस्थ पायी गई। जांच के उपरान्त डाक्टरों ने उन्हें एम्स से छुट्टी दी।

दिल्ली एम्स में भर्ती डा. स्वराज विद्वान को मिलने उनके गृह राज्य सहित उत्तरप्रदेश, हिमाचल, महाराष्ट्र गुजरात, राजस्थान, जम्मू  कश्मीर,हरियाणा,पंजाब आदि राज्यो के नागरिक उनसे मिलने आए थे।

एम्स मेडिकल की टीम के द्वारा बताया गया कि ब्रेन हेमरेज के बहुत कम केस ऐसे होते हैं जो शीघ्र स्वस्थ्य हो जाते है। मा. सदस्य के साथ देश की दुआ व दवा दोनों ने काम किया।

         

Saturday, July 14, 2018

अपर शिक्षा निदेशक ने किया कई राजकीय प्राथमिक स्कूलाे का निरीक्षण

प्रेम नगर पछवादून
अपर शिक्षा निदेशक बेसिक  एस पी खाली ने आज कई राजकीय प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों का निरीक्षण किया, सर्वप्रथम खाली राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवथला विकास नगर 7:30 बजे प्रातः पहुंचे तो उन्हें प्रसन्नता हुई की प्रधान अध्यापिका तथा 2 शिक्षक पूर्व में ही विद्यालय में उपस्थित थे,
 प्रधानाचार्या संगीता जोशी के विद्यालय संचालन की प्रशंसा करते हुए विद्यालय के अन्य कार्यों का निरीक्षण भी संतोषजनक पाया ,शिक्षिका शारदा  सैनी की अध्यापक डायरी का अवलोकन करते हुए उन्होंने उन्हें आदर्श शिक्षिका बताया तथा उनके कार्य की प्रशंसा की शारदा सैनी  ने  छात्रों के लिए पानी की टंकी व्यक्तिगत रूप से लगाई, जिसके लिए भी उन्होंने उनकी सराहना की ,
अपर निदेशक ने कक्षा में जाकर छात्र छात्राओं से विभिन्न विषय पर संवाद भी किया तथा छात्रों का उत्साह भी बढ़ाया ,
अन्य विद्यालयों के  निरीक्षण में उन्होंने शिक्षकों को अपने कर्तव्य के प्रति सजग एवं निष्ठावान रहने की चेतावनी दी,
 उन्होंने कहा कि समाज को शिक्षित वर्ग से काफी अपेक्षाएं हैं जनपद खरे उतरना शिक्षकों का कर्तव्य है,
डी0डी0 कॉलेज में संकल्प के साथ स्नातक के छात्र/छात्राओं का विदाई
समारोह का आयोजन 

डी0डी0 कॉलेज के स्नातक स्तर के  छात्र-छात्राओं का
विदाई समारोह का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ संस्थान के
चैयरमैन  जितेन्द्र यादव ने दीप प्रज्वलित कर किया। कार्यक्रम में
छात्र-छात्राओं द्वारा विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की
प्रस्तुतिदी गयी। कार्यक्रम में सम्मलित विद्वान षिक्षकविदों व
छात्र-छात्राओंनेएक-दूसरे से अपने अनुभव साज्ञा किये।
इस अवसर पर संस्थान के चैयरमैन ने कहा कि इन तीन वर्षो में
छात्र-छात्राओं ने न केवल कॉलेज के अनुषासन को बनाये रखा एवं  विभिन्न
प्रकार की प्रतियोगिताओं में अपना सर्वोच स्थान भी बनाये रखा जिससे
संस्थान के नाम के साथ राज्य के नाम को भी रोषनकिया है।
संस्थान के अकादमिक चैयरमैन डॉ0 वी0के0 त्यागी ने सर्वश्रेठ
छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया ।
विदाई समारोह के मिस्टर डी0डी0 आषीष काला, मिस डी0डी0 रेखा भण्डारी,
मिस्टर फेयरवेल विषाल ज्याला, मिस फेयरवेल रितिका असवाल, मिस्टर डांसर
आशुतोष, मिस डांसर नेहा कुमारी, मिस्टर मिलियन डॉलर स्माइल षिषान्त एवं
मिस मिलियन डॉलर स्माइल षिवानी रावत रही।
कार्यक्रम का समापन संस्थान की उपप्रधानाचार्य श्रीमती ज्योत्सना रमोला
ने छात्र-छात्राओं के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुये किया। साथ-साथ
सभी छात्र-छात्राओं ने यह भी संकल्प लिया कि वो 2018-19 पर्यावरण को
बचाने के लिये सभी छात्र दो-दो वृक्ष लगाकर गुरू दधिणा के रूप में देंगे।