नवल खाली
भरतु की ब्वारी का काल्पनिक चरित्र गढ़, दिखलाई पहाड़ की हकीकत और यथार्थ। देश ही नहीं विदेश में भी मची धूम!
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
पहाड़ लोगों के लिए आज भी पहाड़ लगता है। लेकिन इसी पहाड़ में सैकडो बहुमूल्य औषधियों का खजाना छुपा है। वेदों की रचना इसी पहाड़ में हुई है। आज ग्राउंड जीरो से इसी पहाड़ की कंदराओ में जन्मे, पले, बढ़े, और सृजन के नये आयामों को छूते शख्सियत युवा नवल खाली से आपको रूबरू करवाते है। जिनकी भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र नें पहाड़ के घर से लेकर सात समंदर पार तक तहलका मचाया हुआ है।
सीमांत जनपद चमोली में दानी कर्ण की नगरी और अलकनंदा व पिंडर नदी के संगम से दांयिनी ओर विस्तारित नागपुर परगने में पोखरी विकासखंड के खाल गांव निवासी नवल खाली बचपन से ही बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। गाँव से दिखाई देनी वाली हिमालय की श्रृंखलाबद्ध हिमाच्छदित नयनाभिराम चोटियों नें नवल खाली को सदा अपनी ओर आकर्षित किया। मध्य हिमालय में मौजूद अपने बेहद खूबसूरत गाँव खाल से हर मौसम में दिखाई देना वाले प्राकृतिक सौंदर्य और कल कल बहती अलकनंदा नें नवल को हमेशा पहाड़ और प्रकृति से बेपनाह प्यार करने को प्रेरित किया।
पहाड़ की इन्हीं कंदराओ में पढ़ाई लिखाई की और गाँव के दूसरे युवाओं से इतर अपने भविष्य की राह खुद तय की और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता में हाथ अजमाया। वर्ष 2007 से 10 तक इलेक्ट्रॉनिक ,प्रिंट व विभिन्न पत्र पत्रिकाओं से जरिये नकली राजधानी देहरादून में पत्रकारिता की शुरुवात की जिसके बाद 2010 से अभी तक वे दैनिक अखबार अमर उजाला में गढ़वाल हेड मीडिया सॉल्यूशन के पद पर कार्यरत हैं।
बालपन में ही सृजन की नींव।
नवल खाली को लिखने का शौक बचपन से ही था। या यों कहिए की सृजन की नींव बचपन में ही पड गयी थी। स्कूल से लेकर स्कूल की छुट्टियों के दौरान नवल गाँव में कभी गाय चराने जंगल जाया करते थे तो वो कुछ न कुछ लिखा करते थे और दोस्तों को अपना लिखा पढ़कर सुनाते थे। हर कोई नवल की तारीफ करता। फिर स्कूल की पढाई के बाद एक दौर आया जब कैरियर बनाने की दिशा में इन चीजों के लिए वक्त ही नही मिला।
पहाड़ से मिला हौंसला।
सदा पहाड़ से प्यार करने वाले नवल खाली को जब पुनः अपने पहाड़ में आने का मौका मिला तो उन्होंने पूरे पहाड़ की खाक छान डाली और पहाड़ को एक विद्यार्थी की तरह समझा, जाना और महसूस किया। इस दौरान नवल का कई लोगों से मिलते रहना, उनकी मुश्किलें ...और उनकी खुशी जानने की कोशिश करना दिनचर्या में शामिल थी। वे अक्सर जमीन से जुड़े किरदारों को यहाँ वहां ढूंढते थे जो धीरे धीरे नवल का शगल बन गया था। नवल उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ दोनो मंडलों की अधिकांश जगहों के भमण कर चुकें हैं। इसलिए वे पहाड़ को बेहद करीब से भी जान पाये।
जीवन के अनुभवों और पहाड़ की पीड़ा से उपजा काल्पनिक चरित्र 'भरतु की ब्वारी'।
नवल खाली नें भरतु की ब्वारी से पहले बीरू, धरमु, हरि..आदि ऐसे कई किरदारों पर शार्ट स्टोरी लिखी। जिनमे पलायन, रिवर्स पलायन, रोजगार व रोजमर्रा के खट्टे मीठे किस्से शामिल हैं। उसके बाद भरतु की ब्वारी नामक पात्र भी लगातार भ्रमण करके और सामाजिक परिवेश पर अध्ययन के उपरांत उपजा। भले ही कहानी काल्पनिक हो मगर पाठको को वो अपने किरदार के आस पास नजर आता है। जिससे भरतु का काल्पनिक चरित्र यथार्थ नजर आता है।
पहाड़ के गांव, बाजार से लेकर सात समंदर पार तक काल्पनिक चरित्र भरतु की ब्वारी की धूम।
चाचा चौधरी के किस्से, डायमंड पाॅकेट बुक्स, चंद्रकांता सीरियल के बाद यदि पहाड़ में सबसे ज्यादा गढा हुआ काल्पनिक चरित्र यदि लोगों के मध्य प्रसिद्ध हुआ तो वो है भरतु की ब्वारी का ..। गाँव के पनघट, खेत, खलियान, शादी ब्याह, छोटे शहर, बड़े शहर, स्कूल, ऑफिस, बस, से लेकर सात संमदर पार तक हर किसी कि जुबान पर भरतु की ब्वारी की कहानी की धूम मची हुई है। हर कोई एक के बाद एक अगली कडी के इंतजार में रहता है। आज भरतु की ब्वारी डिजिटल प्लेटफार्म वटसप यूनिवर्सिटी और फेसबुक यूनिवर्सिटी में तो सबसे ज्यादा ट्रेंड करने वाला काल्पनिक चरित्र बन चुकी है.....।
भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र के जरिए दिखलाई पहाड़ की हकीकत। दिया नया संदेश।
युवा लेखक नवल खाली नें भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र के एक नहीं बल्कि 50 सीरिज अब तक लोगों के मध्य प्रस्तुत किए है। जिसमें पहाड़ के लोकजीवन की हकीकत से लेकर यहाँ की समस्या, रोजागार, पलायन, रिवर्स माइग्रेशन, बेरोजगारी सहित विभिन्न मुद्दों को बखूबी से आखरों में पिरोकर बहुत सुंदर तरीके से लोगों के सामने रखा और हर एक कहानी में कुछ न कुछ संदेश दिया है।
भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र लोगों को लगी हकीकत।
नवल खाली ने भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र को हर कहानी में इतने बेहतरीन ढंग से गढा है कि कई लोगों को ये अपनी खुद की कहानी लगती है।
कई बार तो भरतु नाम के कई लोगों ने बकायदा नवल को मेसेज करके बुरा भला भी कहा एक भरतु ने तो यहां तक कहा कि तुमने मेरी ही कहानी लिख दी है, सच बता मेरे गाँव के किस आदमी ने तुम्हे मेरे बारे में बताया ।
नवल को उस भरतु की बात पर बड़ी हंसी भी आई और आश्चर्य भी। वहीं नवल को कई फौजी भाई लगातार नया लिखने की प्रेरणा भी देते हैं जबकि कई लोगों की नाराजगी भी है कि वे फौजियों को बदनाम कर रहे हैं और उनकी बीबियों का उपहास कर रहे हैं। वे कई बार गुरुजी पर कहानी लिख चुके है और उन्हें गुरु लोगों की भी नाराजगी झेलनी पड़ी। वहीं इस पर नवल खाली का कहना है कि मैंने कभी किसी प्रोफेशन को केंद्र में रखते हुए ये सीरीज नही बुनी है। जो महसूस किया, देखा, समझा और जाना वही रच दिया।
पहाड़ को जिया ही नहीं आखरों में भी पिरोया ताकि लोग वापस अपने पहाड़ लौट आये!
भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र को लेकर नवल खाली से लंबी गुफ्तगु हुई। बकौल नवल खाली मेरा मुख्य मकसद समसामयिक विषयों, पलायन, रोजगार, विलुप्त होती संस्कृति, परम्परा और पहाड़ी डिक्सनरी से दूर होते शब्दों से पाठको को रूबरू करवाना है और यदि एक व्यंग व हँसी के माध्यम से ये मैं कर पाऊं तो मेरे लिखने की सार्थकता होगी। मेरी अभी तक की लिखी कहानियों को जल्द पाठक पुस्तक व ई-बुक के माध्यम से भी पढ़ पाएंगे। पहाड़ के प्रति अपने प्यार को मैं शब्दों में बयां नही कर सकता।काश मेरे पास कोई जादू की छड़ी होती तो मैं पहाड़ों की समस्याओं को खत्म कर पाता। सब हो सकता है पर सरकारो का पहाड़ो के प्रति उदासीन रवैया अलग राज्य बनने के 18 साल बाद भी बदस्तूर जारी है। जो कि बेहद दुःखद है। यदि पहाडी राज्य राजधानी गैरसैंण होगी तो निःसन्देह पहाड़ों के दिन बहुरेंगे और लोग वापस पहाड की ओर लौटेंगे।
वास्तव मे देखा जाय तो नवल खाली नें भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र के जरिए नये आयाम स्थापित किये हैं। उन्होंने सृजन की एक नयी लकीर खींची है। लोग बहुत बेसब्री से उनकी सीरिज का इंतजार करते हैं और खूब पसंद भी करते है। पहाड़ के गांव से लेकर सात समंदर पार तक उनके काल्पनिक चरित्र भरतु की ब्वारी की धूम मची हुई है। डिजिटल युग और वटसप, फेसबुक यूनिवर्सिटी के इस दौर में जहाँ हर कोई काॅपी पेस्ट के जरिए अपनी अभिव्यक्ति का आदान प्रदान कर रहा है वहीं नवल खाली की बेहतरीन सृजनात्मक पहल नें उन्हें नया मुकाम दिलाया है।
इस आलेख के जरिये युवा लेखक नवल खाली को उनके सृजनात्मक पहल और भरतु की ब्वारी काल्पनिक चरित्र के 50 एपीसोड पूरे होने पर एक छोटी सी भेंट। आशा और उम्मीद करते है कि उनकी ये सृजनात्मक पहल नित नयें नयें प्रतिमानों को छूओगे।
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान।