- जानलेवा है हेपेटाइटिस की बीमारीः डाॅ0 सुजाता संजय
- हेपेटाइटिस का कारण बन सकता है टैटू: डाॅ0 सुजाता
- हेपेटाइटिस से रहें बचकर!: डाॅ0 सुजाता संजय
- केरोनाकाल का हेपेटाइटिस डेरू लिवर की सूजन हैं तो कोरोना का संक्रमण जानलेवा है: डाॅ0 सुजाता
- जानलेता है हेपेटाइटिस की बीमारी, बचाव के लिए सतर्कता है जरूरी: डाॅ0 सुजाता
देहरादून। वल्र्ड हेपेटाईटिस डे के अवसर पर सोसायटी फाॅर हैल्थ एजुकेशन एंड वूमैन इमपावरमेन्ट ऐवेरनेस द्वारा संजय आॅर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेन्टर में गर्भावस्था के दौरान हेपेटाइटिस रोग के बारे में मरीजों व स्वास्थ्य कर्मियों को जागरूक किया गया। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति सम्मानित डाॅ0 सुजाता संजय स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, ने महत्वपूर्ण जानकारी दी। हेपेटाइटिस जानलेवा बीमारी है। जिसमें हेपटाइटिस बी सबसे अधिक प्रभावित करने वाली बीमारी है। हर साल 28 जुलाई को वल्र्ड हेपेटाइटिस डे मनाया जाता है। इस बार हेपेटाइटिस डे की थीम हेपेटाइटिस फ्री फयूचर रखा गया है।
उन्होनें बताया कि लीवर में वायरल संक्रमण से होने वाली सूजन को हेपेटाइटिस कहते है। यह लीवर कैंसर का सबसे बड़ा कारण हैै। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में 40 लाख लोग हेपेटाइटिस बी या सी से पीडित हैं। हेपेटाइटिस से पीडित व्यक्ति के लीवर में गंभीर छति हो सकती है जो कुछ समय बाद जानवेला साबित हो सकती है। इस बीमारी से बचाव का सबसे अच्छा रास्ता जाग़रूकता है। विशेष के अनुसार अधिकांश लोगों को यह नहीं पता है कि हेपेटाइटिस पुरूषों में नपुंसकता का कारण भी बन सकता है। हेपेटाइटिस के लिए पांच किस्म के वायरस ए बी सी डी ई और जी जिम्मेदार होते हैं। जांच के लिए आने वाले 90 प्रतिशत ए बी या सी के होते हैं। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को सी श्रेणी के हेपेटाइटिस ज्यादा होने की संभावना रहती है।
विश्व भर में लगभग 500 मिलियन व्यक्ति हेपेटाइटिस ‘बी’ अथवा हेपेटाइटिस ‘सी’(प्रत्येक 12 व्यक्ति में 1) नामक वायरस से प्रभावित हैं एवं वर्ष भर में लगभग 1 मिलियन व्यक्ति इसके कारण मौत का शिवार हो रहे है। ज्यादातर व्यक्तियों को इस प्रकार के पुराने वायरस से प्रभावित होने का पता ही नही चल पाता। विश्व हेपेटाटिस दिवस(28 जुलाई) को मनाने के पीछे इसका उद्देश्य लोगों को इस प्रकार के हेपेटाइटिस बी व सी के बारे में जागरूक करना, रोकथाम करना, निदान एवं उपचार करना है।हर साल भारत में लगभग ढ़ाई लाख लोग इस बीमारी से मौत का शिकार बनते हैं। 70 से 80 फीसदी लोगों में हेपेटाइटिस के लक्षण नहीं दिखाई देते, इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है। लीवर या जिगर शरीर के सबसे बड़े आंतरिक अंगों में से एक है और यह शरीर को विषाक्त पदार्थो से छुटकारा दिलाने सहित 500 से अधिक तरह के कार्य करता है। आदर्श रूप से, लीवर को खुद को सवत साफ करना चाहिए। हालांकि, ज्यादातर लोगों में, लीवर बेहतर तरीके से कार्य नहीं करता है क्योंकि यह पर्यावरण और आहार दोनों तरह के विषाक्त पदार्थो से बुरी तरह से घिरा हुआ है।
खराब जीवनशैली, खाने की अस्वास्थ्यकर आदतें और भोजन में प्रयोग किये जाने वाले खतरनाख कीटनाशक और भारी धातुओं की उपस्थिति के कारण हमारे लीवर पर अधिक जोर पड़ता है। ऐसे में, प्राकृतिक विषाकतता (डिटाॅक्सिफिकेशन) विधियों के साथ अपने महत्वपूर्ण अंगों की मदद करे रसायनों और प्रदूषकों के हानिकारक प्रभावों का मुकाबला करने में मदद मिलेगी। यहां कुछ सुरक्षित और प्रभावी तरीके बताये जा रहे हैं जो आपके लीवर को स्वस्थ रखेंगे और इसे बेहतर तरीके से कार्य करने में मदद करेंगे।
डाॅ0 सुजाता संजय ने बताया कि पीलिया खुद में बीमारी नहीं है, बल्कि अन्य किसी रोग की ओर इशारा है। गर्भावस्था में वैसे भी काफी सतर्कता बरती जाती है। फिर भी किसी तरह के रोग या उसके लक्षणों को कदापि हल्के में नहीं लेना चाहिए। आगे चलकर पीलिया ही हेपेटाइटिस का रूप ले लेता है। जिसके कई रूप हैं इसके प्रति जागरूकता से ही बचाव संभव है।
हेपेटाइटिस बी का संक्रमण अधिकतर दूषित सीरिंज, खून या यौन संबंध से हो सकता है। युवाओं में शरीर पर टैटू बनवाना फैशन का हिस्सा बन चुका है। पर शरीर बने टैटू हेपेटाइटिस सी का कारण बन सकते हैं। यही नहीं निडिल से कान छेदवाना या गली मोहल्ले के डेंटल क्लिनिक में दांत साफ करना हेपेटाइटिस बी व सी का कारण बन सकता हैं। उन्होंने कहा कि आजकर शरीर पर टैटू बनवाने का चलन खूब है। एक ही निडिल से कई लोगों को टैटू बनाने से हेपेटाइटिस सी हो सकता है।यह संक्रमित मां से गर्भ में बच्चे को हो सकता है। मां केवल कैरियर भी हो सकती है। बच्चे में इसका संक्रमण रोकने के लिए जन्म के उपरांत 12 घंटे के अंदर हेपेटाटिस-बी वैक्सीन की पहली खुराक एवं इम्मूनोग्लोबुलिंन के इंजेक्शन दिये जाते हैं। शिशु को स्तनपान कराने में परहेज नहीं करना चाहिए। पीलिया होने पर आराम करें एवं डाॅक्टर की निगरानी मेें रहें। हेपेटाइटिस से प्रेगनेन्सी में यह असर होता है कि शुरूआती दिनों में गर्भपात का खतरा, समय से पहले डिलीवरी की चांस, डिलीवरी के बाद रक्तस्राव का डर, गर्भावस्था में गंभीर रूप धारण कर सकता है।
अधिकतर व्यक्ति जो इस वायरस से प्रभावित होते हैं उनको इसके लक्षणों के बारे में पता ही नही चल पाता यहां तक कि उनका लिवर भी क्षतिग्रस्त हो जाता है। अधिक समय पश्चात् उनका लिवर पूरी तरह से खराब हो चुका होता है।जिसको सिरोसिस कहते है। यदि आपको लिवर सिरासिस है तो आपकी जान को खतरा बन जाता है जो रक्तस्राव, पेट में पानी भर जाना, लिवर कैंसर अथवा कोमा में चले जाना आदि हो सकता है।खून की सामान्य जांच से हेपेटाइटिस बी और सी का पता लगाया जा सकता है, क्योंकि मरीज में शुरूआती लक्षण न दिखने के कारण इस बीमारी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। इस संक्रमण के हाईरिस्क ग्रुप में संक्रमित मां से बच्चे, चिकित्सा पेशे से जुड़े लोग, ऐसे मरीज जिन्हें रक्त चढ़ाया गया हो, सिरिंज से ड्रग लेने वाले आते हैं। इसलिए संक्रमण का पता लगाने के स्कीनिंग सबसे जरूरी है। हेपेटाइटिस बी वायरस से बचाव का एक मात्र उपाय टीकाकरण है।
हेपेटाइटिस के खिलाफ अपना प्रतिरक्षण अवश्य करवाएं।अल्कोहल, तबांकू और मनोरंजक दवाओं से बचाव करें। कम वसा और उच्च रेशा युक्त आहार का सेवन करें।अपने आहार में फल, सब्जियों और साबुत अनाजों को शामिल करें। सतृप्त वसा से बचें। हाइड्रेटेड रहें तथा अधिक से अधिक मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें। अधिक नमक युक्त अथवा लिपटे खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें। स्वस्थ कैलोरी के सेवन को बनाए रखें। यह आपके शरीर के वज़न को संतुलन रखता है। सिके पैक्ड आहार, सोडा, केक और कुकीज जैसे मीठे आहार का सेवन करने से बचें।कम कैलोरी और गैर दुग्ध उत्पादों का सेवन करें व तनाव से बचें।
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