
बारा राणा स्मारक
राष्ट्र भक्ति के पर्याय महाराणा प्रताप के सेनानी एवं वंशज 16 वी शताब्दी में उनके उपरांत मुगलों के आक्रमणों से अपनी रीतिरिवाज़ व मूल संस्कृति की रक्षा हेतु अलग अलग स्थानों पर स्थानांतरित हुए।
उन्ही में से बारा राणाओ का एक समूह वर्तमान उधम सिंह नगर की तराई के जंगलो में कैलाश और नन्घोर नदी के संगम पर आकर बसा। धीरे धीरे परिवार बढ़ता गया और बारा राणाओ के समूह ने गाँव का रूप ले लिया जिसका नाम मीरा बारा राणा पड़ गया जो अभिलेखों में आज भी इसी नाम से जानी जाती है।
कालांतर में जंगली जानवरो , लुटेरों एवं प्राकृतिक आपदाओं के कारण से वहॉ रहना संभव नहीं हुआ तो बारा राणाओ के नाम पर बारह गाँव बसाऐ गए , किन्तु उस स्थान पर अपने पूर्वजो की स्मृति के रूप में छोटा सा स्मारक बनाया गया जो कि बाद में जेल कैंप में चला गया। अब उसी स्थान पर सेवा प्रकल्प संस्थान द्वारा थारू जनजाति के सर्वागीण विकास के लिए निम्न प्रकल्प संचालित है।

बारह राणा स्मारक - पूर्वजो की स्मृति को सुरक्षित रखने एवं उनका जीवन आगे आने वाली पीढ़ियो को प्रेरणा देने के लिए महाराणा प्रताप की भव्य मूर्ति व बाराह राणाओ का स्मारक जिसमे क्षेत्र के प्रत्येक थारू परिवार का योगदान है परिवार में पूर्वजो के शौर्ये और गौरव को प्रकट करता है।
संग्रहालय-
विलुप्त होती थारू जनजाति की पुरानी पहचान को संरक्षित करने हेतु विभिन्न वस्तुओ , शस्त्रों, घरेलू उपकरणों एवमं खेती के उपकरणों का संग्रहालय परिसर में स्थित है।
मंदिर
थारू जनजाति के प्रत्येक घर मे शिवलिंग की स्थापना रहती है अंत उनकी धार्मिक आस्था.के संरक्षण हेतु भव्य मंदिर में भगवान शिव स्वयं विराजित है।
गोशाला
रासायनिक खाद व कीटनाशको के अत्यधिक प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति को गाय के गोबर व गौ मूत्र से बढ़ाया जा सकता है।
अतः गाय का गोबर व गौ मूत्र खेती व मानव के लिए अनेक प्रकार से उपयोगी हो सकता है दूध नहीं देने वाली गाय भी किसान के लिए कितनी उपयोगी हो सकती है यह उदाहरण प्रस्तुति करने हेतु गोशाला भी संचालित है।
ओषधि एवं नक्षत्र वाटिका
जड़ी बूटियों का व्यावहारिक ज्ञान कराने हेतु एवं प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षारोपण की प्रेरणा देने के लिए यह वाटिकाये परिसर की शोभा बढाती है।
विभिन्न आयाम
वनवासी कल्याण आश्रम
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