पहाड की प्रतिभा!-- हिमालय के अंतिम गांव 'वाण' के होनहार 'दीपक' को दसवीं में 81% फीसदी अंक, पहाड़ के छात्रों के लिए बनें प्रेरणास्रोत...
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
प्रतिभा किसी चीज की मोहताज नहीं होती है। मैं कभी भी अंको की दौड़ का पक्षधर और हिमायती नहीं रहाँ हूँ। क्योंकि मेरा मानना है कि अंको की दौड और मेरिट सूची में स्थान बनाने की चाहत से छात्र बेवजह तनाव में आ जाते हैं और छात्रों की प्रतिभा से न्याय भी नहीं हो पाता है। आज उत्तराखंड बोर्ड के 10 वीं और 12 वीं के नतीजे घोषित हो गये हैं। पूरे परीक्षाफल पर सरसरी निगाहें डालेंगे तो पता चलेगा एक बार फिर पहाड़ के गुदडी के लालों नें कमाल कर दिखाया है। विपरीत परिस्थितियों, पढाई के बेहतर माहौल न होंने और शिक्षकों की कमी के बाबजूद पहाड़ की प्रतिभाओं नें अपना लोहा मनवाया है। साथ ही उन लोगों के लिए भी एक सीख है जो शहरों में रहकर बेहतर सुख सुविधाओं के बाबजूद भी बमुश्किल से 80% अंकों तक पहुंच पाते हैं।
आज घोषित उत्तराखंड की बोर्ड परीक्षा में सफल हुये एक छात्रों में से एक छात्र है दीपक सिंह। दीपक सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाॅक के सबसे दूरस्थ गांव जो हिमालय का अंतिम बसागत गांव वाण गांव का रहने वाला है। साढे आठ हजार फिट की ऊचाई पर स्थित इस गांव से आगे केवल बुग्याल और बर्फ से ढके पहाड़ नजर आते हैं। यह गांव तीन महीने बर्फ से ढका रहता है। दीपक के पिता किसान और मां गृहणी है। दीपक गांव के इंटर कॉलेज वाण में कक्षा 10 वीं का छात्र है। दीपक नें हाईस्कूल की परीक्षा में 81 फीसदी अंक प्राप्त किये। दीपक नें 500 में से 405 अंक लेकर राजकीय इंटर कॉलेज वाण में प्रथम स्थान प्राप्त किया। दीपक की बहिन रेखा नें भी 12 वीं की परीक्षा में द्वितीय स्थान हासिल किया। दीपक के पिताजी भगत सिंह और मां उमा देवी अपने बेटे की सफलता पर बेहद खुश हैं। दीपक अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और गुरूजनों को देते हैं, जिनके प्रयासों से ही वो 81% अंक हासिल कर पाया।
पहाड़ के दीपक का पहाड़ सा हौंसला ..
भले ही आपको दीपक के ये 81% फीसदी अंक कम नजर आयें लेकिन मेरी नजर में ये अंक 95% के बराबर हैं । क्योकि दीपक पहाड के उस गाँव का रहने वाला है जहाँ परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत है। हिमालय के अंतिम गांव जो तीन महीने बर्फ से ढका हुआ रहता हो। जहां पर लाइट से ज्यादा भरोसा ढेबरी लालटेन (सौर ऊर्जा) पर हो, जिसके सहारे पढ़ाई की जाती हो। एक किताब, एक अखबार खरीदने और बाल बनाने के लिए 40 किमी दूर देवाल जाना पडता हो। तो आप सोच सकते हैं कैसी विषम परिस्थिति होगी उस गांव की। ऐसी विपरीत परिस्थितियों और पढाई के अनुकूल बेहतर माहौल न होने के बाद भी रोज घर से दो किमी पैदल स्कूल आना और फिर वापस घर जाना। घर जाकर घर के कार्यों में भी हाथ बटाना और फिर पढ़ाई करना। और फिर 81% अंक हासिल करना वाकई काबिलेतारीफ है। यदि यही छात्र देहरादून जैसे शहर में होता तो यही छात्र वहां 95% अक हासिल करता।
पहाड़ के छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत और सरकारी स्कूलों में भरोसा जगाता है दीपक की सफलता!
विपरीत परिस्थितियों में भी दीपक के प्राप्त किये गए 81% अंक पहाड़ के होनहार प्रतिभाशाली छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत हैं तो वहीं शहरों में रह रहे लोगों के लिये एक मिशाल भी है की यदि प्रतिभा हो तो पहाड़ में भी रहकर भी सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है। शिक्षा के लिए पहाड़ से पलायन करने वालों के लिए भी दीपक नें एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि प्रतिभा के लिए पहाड़ और मैदान मायने नहीं रखता है। दूसरी ओर दीपक की सफलता सरकारी स्कूलों के प्रति विश्वास और भरोसा भी जगाता है। दीपक की सफलता में राजकीय इंटर कॉलेज वाण में कार्यरत शिक्षकों की भी अहम भूमिका है जिन्होंने दीपक को बेहतर शैक्षिक परिवेश दिया साथ ही मार्गदर्शन भी किया। शिक्षकों के द्वारा दिए गए गुणवत्तापरक शिक्षा नें भी दीपक को प्रोत्साहित किया। दीपक के पिताजी भगत सिंह किसान हैं और मां उमा देवी गृहणी हैं। दोनों ने अपने बेटे के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। दोनों अपने बेटे की सफलता पर बेहद खुश हैं। विगत दिनों दीपक के छोटे भाई का भी चयन नवोदय विद्यालय पीपलकोटी के लिए हुआ था।
वास्तव में देखा जाए तो पहाड़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यदि इन्हें पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल और उचित अवसर मिले तो ये भी मेरिट लिस्ट में पहले स्थान पर आ सकते हैं। आवश्यकता है ऐसी प्रतिभाओं को उचित मार्गदर्शन की।
हमारी ओर से भी ढेरों बधाइयाँ दीपक..
Heera Bisht Garhwali
Surendra S Danu
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