Thursday, July 23, 2020

मिसाल!-- पति-पत्नी नें बंजर भूमि में उगाई बेशकीमती जडी बूटियाँ


मिसाल!-- पति-पत्नी नें बंजर भूमि में उगाई बेशकीमती जडी बूटियाँ, परंपरागत खेती की जगह हर्बल खेती से लिखी सफलता की नयी कहानी..
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
आज बात पहाड़ की। हिमालय के उस गांव की जहां से आगे केवल और केवल निर्जन जंगल और बुग्याल है। 3 महीने बारिश और तीन महीने बर्फ से ढका हुआ रहता है। यह गांव हिमालय का अंतिम आबादी वाला गांव है। विपरीत परिस्थितियों में भी हार न मानने वाले इस गांव के प्रगतिशील किसान दंपत्ति आज लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनें हुये हैं। किसानों की खुशहाली से देश की तरक्की का रास्ता निकलता है। अब कुछ किसान परंपरागत खेती से दूरी बनाकर खुद ही तरक्की का रास्ता निकाल रहे हैं। ऐसा ही कुछ करके दिखाया है सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाॅक के सदूरवर्ती गांव वाण के किसान दंपत्ति पान सिंह बिष्ट और बुदुली देवी नें। जिन्होंने हिमालय में बसे वाण गांव में अपनी बंजर भूमि में परम्परागत खेती से इतर बहुमूल्य औषधि गुणों से भरपूर जडी बूटियों को उगाकर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। 



इस दंपत्ति नें ये दिखला दिया है कि पहाडियों का पुरूषार्थ क्या होता है। उन्होंने अपने बंजर भूमि में कुटकी, जटामासी, गंदरायण, कूट सहित अन्य जडी बूटियों को उगाया है जबकि लगभग 100 से अधिक सेब के पेड भी लगायें हैं। जिससे इन्हें हर साल लाखों की आमदनी तो होती है अपितु अच्छा खासा मुनाफा भी हो जाता है। इसके अलावा इनके द्वारा मत्स्य पालन और पाॅली हाउस के जरिए सब्जी उत्पादन भी किया जा रहा है। अब ये मौन पालन और कुकुट पालन करने की भी योजना बना रहें हैं। इनके हर्बल गार्डन को देखकर गांव के अन्य लोग भी हर्बल खेती करनें को प्रोत्साहित हुये हैं। देवाल ब्लाॅक के घेस, बलाण, चोटिंग, सौरीगाड गांवो में भी किसानों द्वारा हर्बल खेती की जा रही है।

दोनों दंपत्ति विगत 10 सालों से परम्परागत खेती की जगह हर्बल खेती कर रहें हैं। हर्बल खेती पर किसान पान सिंह से हुई लंबी गुफ्तगु पर वो कहते हैं कि आज परम्परागत खेती की अपनी बहुत सारी समस्याएं हैं। बेमौसम बारिश, सूखा पडना, कीट पंतगो से लेकर जंगली जानवरों से नुकसान होना, अत्यधिक मानव श्रम, लागत ज्यादा उत्पादन कम और बाजार का उपलब्ध न होना पारम्परिक खेती के सबसे बडे दुष्प्रभाव हैं जबकि दूसरी ओर हर्बल खेती में श्रम, लागत कम और मुनाफा बहुत ज्यादा है। मेहनत तो करनी ही पडती है। पूरे दिनभर में यदि महज दो घंटे भी आपने अच्छे से मेहनत कर ली तो काफी है। आज बहुत सुकुन मिलता है और खुशी होती है। मुझसे ज्यादा योगदान इस हर्बल गार्डन में मेरी पत्नी का है। वो बहुत ज्यादा मेहनत करती है। मेरी युवाओं से भी अपील है कि वो हर्बल खेती में स्वरोजगार करें। इसमें रोजगार के असीमित संभावनाएं हैं और मुनाफा भी बहुत है।

 वर्तमान में हर्बल का बाजार 60 हजार करोड़ का है। हर्बल उत्पादों को पतंजलि, डॉबर, हिमालय, चरक जैसी कंपनियां बडे पैमाने पर खरीद रहीं हैं क्योंकि इन उत्पादों से बडे पैमाने पर आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई जाती है। उत्पादित जड़ी बूटी को भेषज संघ, एचआरडीआई के माध्यम से मंडी में बेचा जाता है। सरकार द्वारा भी समय समय पर हमें हर्बल खेती से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाता है। हैप्रेक श्रीनगर से भी वैज्ञानिकों द्वारा हमें प्रशिक्षण और जानकारी दी गई। मेरे हर्बल गार्डन को देखने शोधार्थी और अन्य लोग हर साल यहाँ आते हैं। मैं अपने हर्बल गार्डन से हर साल हजारों हर्बल की पौध जनपद के अन्य प्रगतिशील किसानों को देता हूँ।


गौरतलब है कि जैवविविधता के धनी उत्तराखंड में जड़ी-बूटियों का विपुल भंडार मौजूद है। हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली बेशकीमती जड़ी-बूटियां अब खेतों में भी उगने लगी हैं। तमाम बीमारियों में काम आने वाली संजीवनी सरीखी इन जड़ी-बूटियों की खेती से अच्छा मुनाफा मिलने के कारण परंपरागत खेती करने के बजाय किसान इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। राज्य के चमोली, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी जैसे पहाडी जनपदों में किसान हर्बल खेती कर रहें हैं। अतीश, कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाचु और शंखपुष्पी जैसे हर्बल पौधों की खेती से किसानों का एक छोटा समूह भी 3 लाख रुपये प्रति एकड़ तक की कमाई कर रहा है। राज्य के हिमालयी क्षेत्र से सटे गांवों में छह हजार से अधिक परिवार जड़ी-बूटी की खेती कर रहे हैं।सालमपंजा, जटामासी सहित कुछ अन्य जड़ी-बूटियों के दोहन व बिक्री को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया। इनका दोहन केवल नाप भूमि में खेती करने के बाद ही किया जा सकता है। 
वास्तव में देखा जाए तो पहाड़ में परम्परागत खेती अब फायदा का व्यवसाय नहीं रह गया है इसके इतर यदि ऊँचाई वाले क्षेत्रों में हर्बल खेती को लेकर लोग खासतौर पर युवा वर्ग अपनी रूचि दिखायें तो इस क्षेत्र में रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं क्योंकि बाजार में हर्बल की बहुत ज्यादा मांग है। केन्द्र सरकार द्वारा भी 4 हजार करोड़ की धनराशि हर्बल खेती को बढावा देने के लिए इस लाॅकडाउन में घोषणा की है ताकि इससे किसानों की आर्थिकी बढ सकें। हिमालय की वीरान पहाडों में हर्बल खेती के जरिए रोजगार सृजन की उम्मीदों को पंख लगाने वाले प्रगतिशील किसान दंपत्ति से हमको सीख लेने की आवश्यकता है। इनका भगीरथ प्रयास अनुकरणीय तो है अपितु प्रेरणादायक भी। इन्होंने उन लोगों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है जिन्हें पहाड़ आज भी पहाड़ नजर आता है। हमारी ओर से इस दंपत्ति के पहाड जैसे हौंसलों को सैल्यूट और बहुत बहुत बधाइयाँ। आपने पहाड़ में एक नजीर पेश की है..
हजारों सैल्यूट!
Heera Bisht Garhwali

No comments:

Post a Comment