Friday, July 10, 2020

युवाओं के रोल माॅडल हैं चमोली के अनिल थपलियाल।

राज्य के बाहर उत्पादों को पहचान दिलाना चाहते है, अनिल।
अनिल कहते हैं कि उनका लक्ष्य अपने सभी उत्पादों को राज्य के बाहर पहचान दिलाना भी है। इसके लिए वह सतत प्रयासरत हैं। अनिल ने अपने उत्पादों को राज्य के बाहर प्रचारित करने के लिए विक्रय केंद्रो तक पहुंचाने की योजना बनाई है। उनका कहना है कि उनका लक्ष्य अगले वर्ष तक राज्य के मैदानी क्षेत्रों सहित राज्य के बाहर भी अपने उत्पादों को पहुंचाने का लक्ष्य है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रदर्शनी और मेलों के माध्यम से भी अनिल अपने उत्पादों का प्रचार कर रहे हैं।

मयंक मैनाली
उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में रोजगार की तलाश में लोगों का तेजी से होता पलायन एक ज्वलंत मुददा रहा है। लोग रोजी-रोटी की तलाश में मैदानी इलाकों और महानगरों का रूख करते हैं। अधिकांश लोग यह कहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में कोई रोजगार संभव नहीं है। वहीं पलायन और पहाडों में रोजगारों पर चर्चा भी एक सामान्य बात है। लेकिन वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि अपने क्षेत्र में ही धरातल पर स्वरोजगार को बढावा दे रहे हैं।
ऐसे ही एक शख्य हैं, उत्तराखंड के सीमांत चमोली जनपद के अनिल थपलियाल। आज अनिल थपलियाल चमोली जिले में ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। वह उन लोगों में है जिन्होनें सरकार और व्यवस्था को कोसने के बजाए अपने इलाके में स्वरोजगार की राह दिखाई, आज प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से अनिल सैकडों लोगों को रोजगार मुहैया करवा रहे हैं। अनिल राज्य के सीमांत चमोली जनपद के थराली के सुनांऊ मल्ला गांव के रहने वाले हैं। गौरतलब है कि अनिल के पिता स्वर्गीय श्री देवीदत्त थपलियाल का निधन अल्प आयु में हो गया था। उस समय अनिल की आयु बेहद कम थी। जिसके बाद अनिल ने अत्यंत परेशानियों का सामना किया। उनको शिक्षा प्राप्त करने में भी अनेक दुश्वारियों का सामना करना पडा। पूरा परिवार संकट के दौर से गुजरा। इस परिस्थिति में अनिल के साथ ही उनके परिजनों का उनको विशेष सहयोग मिला। अनिल की माताजी श्रीमती बल्पा देवी थपलियाल और उनके बडे भाइयों भैरव दत्त थपलियाल और जगदीश थपलियाल का उनको विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। अनिल तथा उनके दोनों बडे भाइयों के मध्य आयु का एक बडा अंतर होने के बावजूद उनके भाइयों ने अनिल को विशेष सहयोग दिया। अनिल ने अपनी शिक्षा पहले गोपेश्वर फिर दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते हुए श्रीनगर गढवाल से एमए कर पूरी की। अनिल बताते हैं कि वर्ष 2006 में उन्होंने पौडी गढवाल के भरसार में गोविन्द बल्लभ पंत विश्वविद्यालय के औद्यौनिकी महाविद्यालय से एक वर्षीय स्वरोजगार आधारित हाल्र्टिकल्चर का प्रमाणपत्र पाठयक्रम किया। इस प्रमाणपत्र से अनिल को संबल तो मिला परंतु घर की आर्थिक स्थितियों के चलते अनिल ने नौकरी की तलाश में दिल्ली का रूख किया। दिल्ली में लंबे समय प्राइवेट नौकरी की। कुछ धन जमा कर दिल्ली के ही खानपुर देवली में ही पार्टनरशिप में फास्टफूड का रैस्टोरैंट खोला। लेकिन दिल में एक कसक थी कि वापिस घर जाना है, पहाड के लिए कुछ करना है। अनिल ने ठान लिया और दिल्ली से विदाई लेकर वापिस अपने पहाड, गांव का रूख किया। वर्ष 2013 में अनिल ने वापिस अपने गांव में जाकर अपने ही गांव में थपलियाल फूड और ब्रेवरेज कार्पोरेशन (टीएफसी) नामक कंपनी की स्थापना की। अनिल बताते हैं कि एक बार फिर से आर्थिक संकट आ खडा हुआ, इस बार अनिल ने अपनी माताजी और परिचितों से कुछ रूपये उधार स्वरूप लेकर और गांव के ही एक व्यापारी से कुछ सामान उधार लेकर काम की शुरूआत की। अनिल कहते हैं कि शुरूआत में आर्थिक संकट के चलते काम में सफलता नहीं मिली। परंतु 2015 में एक सहकारी समिति से लोन (ऋण) मिली सहायता से उन्हें बडा बल मिला। अनिल कहते हैं कि स्थानीय लोगों को पलायन से रोकने और पर्वतीय उत्पादों को पहचान दिलाने के उदेश्य से उन्होंने हार नहीं मानी। अनिल के जज्बे और जीवट से उनकी मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे थपलियाल फूड और ब्रेवरेज कार्पोरेशन (टीएफसी) आज पूरे क्षेत्र और उत्तराखंड में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। आज थपलियाल फूड और ब्रेवरेज कार्पोरेशन (टीएफसी) के उत्पाद पूरे राज्य में अपनी पहुंच बना चुके हैं। अनिल के प्रोडक्शन के उत्पाद बुरांश, माल्टा, आंवला, बेल, जूस और आम, लहसुन, अदरक के अचार सहित जैम, चटनी, पहाडी दालें मसाले जैसे उत्पाद आज कई नामी और बडी कंपनियों को टक्कर दे रहे हैं। अनिल बताते हैं कि आज उनके साथ नौ पूर्णकालिक और सैकडो लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक है उनसे जुडकर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। हांलांकि उत्पादों की मार्केटिंग से लेकर विपणन तक का काम पहले वह स्वयं करते थे। वह बताते हैं कि अब उन्हें उत्पादों के विपणन और मार्केटिंग में उनकी पत्नी रीना थपलियाल का सहयोग मिलता है। अनिल के रोजगार से जुडे लोगों का कहना है कि यहां स्वरोजगार शुरू होने से उन्हें अपने घर के करीब ही रोजगार मिल गया है। अब उन्हें रोजगार के लिए मैदानी इलाकों और महानगरों की दौड लगाने की कोई जरूरत नहीं है। आज अनिल की कंपनी में प्राकृतिक जूसों में बुरांश, माल्टा, आंवला, बेल, अन्नानाश, लीची, अचार में आम, मिक्स, लहसुन, लहसुन और अदरक, हरी मिर्च और मिर्च, जैम में सेब, आडू, नाशपाती, चटनी सेब खट्टी मिठठी, पहाडी दालों में गहत, सोयाबीन, काला भट्ट, काली दाल, राजमा, मडुवा, गेंहु, मकई, जौ, सात अनाज, मसालों में हल्दी, मिर्च, धनिया, मिक्स के साथ ही पहाडी नमक, जखिया, तिल, आलू चिप्स, खूबानी तेल, झंगोरा जैसे उत्पाद हैं। अनिल की कंपनी स्वरोजगार की मुहिम चलाकर उन लोगों के लिए एक सबक है, जो कहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ भी रोजगार संभव नहीं है। वहीं सरकार की नीतियां भले ही कागजों में बनती हों, परंतु धरातल पर काम करने वाले अनिल जैसे उद्यमियों तक वह योजनाएं नहीं पहुंच पाती है। आज एक स्थापित कारोबार कर रहे अनिल स्वयं कहते हैं कि उन्होंने इस उद्यम को स्थापित करने में सरकारी योजना का कोई लाभ नहीं मिला।

भरसार के पाठ्यक्रम से मिली अनिल को प्रेरणा।
अनिल थपलियाल का मानना हैं कि उनके मन में पौडी गढवाल के भरसार के औद्यौनिकी महाविद्यालय जो कि वर्तमान में वीर चंद्र सिंह गढवाली औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय के नाम से परिवर्तित हो गया है से स्वरोजगार आधारित कोर्स करने के बाद उन्हें प्रेरणा मिली। हांलांकि अनिल कहते हैं कि पहले यह कोर्स उन्होंने नौकरी को आधार मानकर किया था, परंतु कोर्स करने के पश्चात उन्होनें स्वरोजगार करने का प्रण किया। वह इस पाठ्यक्रम को आज अपने रोजगार का सबसे बडा आधार मानते हैं।            


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