
चमोली (संजय चौहान )लाॅकडाउन के बीच प्रख्यात साहित्यकार एवं विज्ञान लेखक देवेन्द्र मेवाडी जी को एक सुखद अहसास वाली खबर मिली है। केन्द्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा संचालित शिक्षा पुरस्कार योजना के अंतर्गत उच्च स्तरीय चयन समिति द्वारा वर्ष 2018 के लिए उनकी कृति 'विज्ञाननामा' को चयन किया है। जिसके अन्तर्गत उन्हें 1,00,000/- का नकद पुरस्कार भी दिया जायेगा। हमारी ओर से भी देवेन्द्र मेवाडी जी को उनकी कृति  'विज्ञाननामा' का चयन शिक्षा पुरस्कार-2018 हेतु किये जाने के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ।
इस आशय की जानकारी खुद साहित्यकार देवेन्द्र मेवाडी जी नें अपने फेसबुक एकाउंट पर साझा की है। वे कहते हैं कि लॉकडाउन के निपट सन्नाटे में मेरे पास आकर अचानक इस संदेश ने मेरे विज्ञान लेखन को एक और पहचान दी है। ‘विज्ञाननामा’ का परिचय देते हुए मैंने उसकी भूमिका ‘ये जो विज्ञाननामा है’ में लिखा है, “लोग ज़िंदगी की आपबीती बयां करने के लिए ज़िंदगीनामा लिखते हैं। लेकिन, जिसने ज़िंदगी का हर लम्हा दिमाग में दिप-दिप करते जिज्ञासाओं के जुगनुओं का पीछा करते, उनके उत्तर खोजते हुए बिताया हो, वह क्या करे? 
वह विज्ञाननामा लिखे, भीतर से आवाज़ आई। पुरुस्कार चयन समिति के सदस्यों ने पुरस्कार योग्य समझा। चयन समिति और केन्द्रीय हिंदी निदेशालय का हार्दिक आभार। इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए आधार प्रकाशन के मित्र प्रकाशक देश निर्मोही और मुझे जताए बिना मुखपृष्ठ की यह छवि लेने के लिए जाने-माने छायाकार मित्र कमल जोशी का भी तहेदिल से आभार। 

बाहर झमाझम बारिश हो रही है। प्रिय कवि भवानी प्रसाद मिश्र और घर-गांव भी याद आ रहा है: 
 आज पानी गिर रहा है
 बहुत पानी गिर रहा है!
गौरतलब है कि साहित्यकार देवेंद्र मेवाड़ी का जन्म 7 मार्च 1944 को उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के  कालाआगर गांव में हुआ। उनके पिता श्री किशन सिंह मेवाड़ी किसान और मां तुलसी देवी गृहणी थी। ये तीन भाई हैं और इनकी एक बहिन भी है। इन्होंने वनस्पति विज्ञान में एमएससी, हिंदी में एमए, पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की उच्च शिक्षा प्राप्त की है। वे साहित्य की कलम से विज्ञान लिखते हैं,’ इससे उनका लिखा विज्ञान सरस होता है। आमजन को किस्से-कहानी की तरह रोचक लगता है। लेखन के इन प्रयोगों को इनकी प्रमुख कृतियों में बखूबी देखा जा सकता है। इनमें ‘विज्ञान और हम’, ‘विज्ञाननामा’, ‘मेरी विज्ञान डायरी’ ‘मेरी प्रिय विज्ञान कथाएं’, ‘फसलें कहें कहानी’, ‘विज्ञान बारहमासा’, ‘विज्ञान जिनका ऋणी है’, ‘सूरज के आंगन में’, ‘सौरमंडल की सैर’ आदि शामिल हैं। देवेन्द्र मेवाड़ी ने कई विज्ञान पत्रिकाओं, वैज्ञानिक पुस्तकों का संपादन, अनुवाद भी किया है। वे विगत 50 वर्षों से विज्ञान कथाओं, मार्मिक संस्मरणों से साहित्यिक रचनाधर्मिता से आम जनता के लिए विज्ञान लिख रहे हैं। विज्ञान पर 20 से अधिक पुस्तकें लिख चुके देवेंद्र मेवाड़ी सभी पाठकों को किस्सागोई अंदाज में विज्ञान समझा रहे हैं। उनके दीर्घकालीन सक्रिय विज्ञान लेखन ने समाज में विज्ञान की जागरूकता फैलाई है। ‘मेरी यादों का पहाड़’ उनका आत्मकथात्मक संस्मरण है। 

प्रकृति के चितेरे देवेंद्र मेवाड़ी की बीस साल की उम्र में ही पहली कहानी 1964 में युवक मासिक, आगरा में प्रकाशित हुई। उन्होंने पहला लेख 1965 में विज्ञान परिषद, प्रयाग के विज्ञान मासिक में लिखा। तब से, जो उनकी लेखनी ने अपने पाठकों को तृप्त करने का कार्य शुरु किया, वह आज भी और निखरकर पूरे शबाब पर है। देवेंद्र मेवाड़ी ने आजीविका के लिए आरंभ में अनुसंधान कार्य किए। तेरह वर्ष तक पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में किसानों की पत्रिका 'किसान भारती' का संपादन किया, तो करीब बाईस साल तक पंजाब नेशनल बैंक में जनसंपर्क के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में भी काम किया। परंतु बैंक की नौकरी भी उनके अंदर के लेखक को कैद न कर सकी और वह एक के बाद एक बच्चों के लिए लेख और कहानियां लिखते चले गए। अब नौकरी से अवकाश प्राप्ति के बाद वह पूर्णकालिक लेखक हैं और बच्चों के लिए जोर-शोर से लिख रहे हैं। बच्चों के लिए लिखना आसान नहीं है, खासकर उनके लिए वैज्ञानिक कथाएं लिखना या उनका विज्ञान से साक्षात्कार कराना और भी कठिन कार्य है। पर इस काम को क्रियाशील तरीके से बात-बात में या हंसते-हंसाते बच्चों को समझाना हो, तो देवेंद्र मेवाड़ी जैसे साहित्यकार कम ही नजर आते हैं।
इनके स्तरीय विज्ञान लेखन के लिए इन्हें अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा का प्रतिष्ठित आत्माराम पुरस्कार, हिंदी अकादमी दिल्ली का ‘ज्ञान-प्रौद्योगिकी सम्मान’, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार का राष्ट्रीय विज्ञान लोकप्रियकरण पुरस्कार, भारतेंदु राष्ट्रीय बाल साहित्य पुरस्कार, विज्ञान भूषण सम्मान सहित विभिन्न पुरस्कार शामिल हैं।  
Deven Mewari
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