धूमधाम से मनाया जा रहा है हरेला पर्व
रिपोर्ट मनोरमा सुयाल रावत
आज उत्तराखंड का महान लोकपर्व “हरेला” महोत्सव है।हरियाली एवं खुशहाली का प्रतीक।यह लोकपर्व प्रकृति मूलक अन्न_धन की पूजा के रूप में मनाया जाता है।’हरियाली का पर्व हरेला किसानो के लिए भी विशेष महत्व रखता है।हरेले के दिन किसान विशेषकर अच्छी फ़सल की प्रार्थना करते हैं।यह मान्यता है कि ‘हरेला(पौधा)जितना बड़ा होगा,फ़सल भी उतनी ही अच्छी होगी।
इस त्यौहार को उत्तराखंड की बेटी नंदा(माता पार्वती)और भगवान शिव की पूजा के मास के रूप में भी मनाया जाता है।इसलिए कुमाऊँ में यहाँ से सावन का शुभ आरम्भ भी माना जाता है।
उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में हरेला पर्व से दस दिन पहले एक बर्तन या टोकरी में कुछ मिट्टी भर कर सात तरह के अनाज जिन्हें सतनज भी कहते हैं इसमें घर में उपलब्ध कोई भी सात अनाजों के बीज जैसे- धान,गेहूं, जौ,उड़द,मकई,मूँग,गहत आदि बोते है ,इनकी प्रतिदिन सिचाई की जाती है, इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। हरेले पर्व से एक दिन पहले इन पौधों की गुड़ाई की जाती है ।और हरेले के दिन इन्हें काटकर अपने इष्ट देवों को अर्पित करने के बाद घर के बड़े और बुजुर्गों द्वारा आशीर्वाद के साथ घर के सभी सदस्यों को हरेला चढाया जाता है हरेले पर्व में अनाज से उत्पन्न इन पत्तों को सिर पर और कान के पीछे रखा जाता है।
हरेले पर्व के दिन विवाहितायें अपने माइके आती हैं किन्तु कोरोना काल में सभी अपने घरों में ही हरेला मना रहे हैं , इसी प्रकार गाँव-घरो में “हरेला” का पर्व बहुत ही उत्साह और उमंग से मनाया जाता रहा है !
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