योगाचार्य खुशीराम
वास्तव में योग है क्या इसे समझना बेहद जरूरी है : योगाचार्य खुशीराम
योग क्या है ? आज इस बात को समझने की भी बेहद जरूरत है ।
योग केवल मात्र शरीर को हिलना- डूलाना ,मोड़ना नहीं है । इसमें शारीरिक अभ्यास भी सात्विक विचार , सात्विक आहार, श्रद्धा, समर्पण और अनुष्ठान, पूजा समझ कर के ईश्वर की उपासना किस तरह किया जाता है।
आजकल सभी लोग योग के ऊपर अपनी बड़ी-बड़ी टिप्पणियां/ व्याख्यान दे रहे हैं।
लेकिन वास्तव में योग है क्या इसे समझना बेहद जरूरी है???
योग मनुष्य योनि का प्रथम एवं मूल उद्देश्य है।
मनुष्य के अलावा सभी योनियां केवल भोग योनियां है।
परमात्मा ने केवल मनुष्य को योग करने का अधिकार दिया है।
योग के अर्थ एवं योग की व्याख्या करने के लिए में समर्थ नहीं हूं। और इसकी व्याख्या किसी समय सीमा में नहीं बांधी जा सकती है योग अनंत है।
फिर भी अपनी छोटी बुद्धि और परमपिता द्वारा प्रदत्त सामर्थ्य एवम् वेदों के अनुसार :-
#योग_आत्मा_का_परमात्मा_से_मिलन_है।#
हमारे शरीर में निर्विकार, अनादि ,शाश्वत उस परमात्मा का अंश रूपी आत्मा हमारे शरीर को संचालित करती है।
लेकिन अनंत जन्मों के कर्माश्य हमें उस परमात्मा से युक्त होने के लिए हमें बाधित करते हैं । इस प्रकार कर्मफलों से मुक्त होने का साधन है योग।
जिसके लिए हम अनंत जन्मों से भिन्न-भिन्न योनियों में विचरण करके मनुष्य योनि मैं इस अधिकार को प्राप्त करते हैं।
इसलिए मोक्ष और मुक्ति का साधन है योग
योग के उत्पत्ति और उद्गम की बात अगर करें तो योग अनादि है आदि देव भगवान शिव से लेकर त्रेता युग में भगवान श्री राम और द्वापर युग में योगेश्वर भगवान कृष्ण और कलयुग में भगवान बुद्ध तथा इसे सूत्रों में पिरोने वाले महर्षि पतंजलि इस योग की गंगा को जनमानस के कल्याण के लिए मुक्ति के लिए मोक्ष के लिए निरंतर प्रवाहित करते रहे हैं और अब व्यापक रूप से श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी इस पावन पुनीत कार्य को अपने अनवरत पुरुषार्थ से संचालित कर रहे हैं।
योग अध्यात्म है।योग वेदों का मूल स्तंभ है श्रीमदभगवत गीता का सार है।
सनातन संस्कृति का आधार है योग साधना है भारतीय संस्कृति का गौरव है हमारा सम्मान है हमारी अस्मिता है हमारा स्वाभिमान है हमारी आत्मा है हमारा अस्तित्व है हमारी पहचान है।
(योगाचार्य खुशीराम )
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