देवेंद्र सैनी देव
भगवान बुद्ध का जीवन मनुष्य को यह संदेश देता है कि वह शांति, करुणा ,संवेदना के मर्म को समझें ,आतंकवाद ,दंगे ,युद्ध, आदि समाज की वे भीषण बीमारियां हैं, जिनके दुष्परिणाम देश के हर नागरिक को झेलने पड़ते हैं , इन सबसे किसी का कल्याण , किसी का हित नहीं होता बल्कि इनसे दुख अशांति व पीड़ा का दर्द ही फैलता है ,
कुछ ऐसी ही स्थिति समाज की तब थी ,जब भगवान बुद्ध इस धरा पर आए ,उन्होंने मानव मन को समझा उसके दुख के कारणों को जाना और अपनी करुणा का स्रोत बहाते हुए उन सभी दु:खते मनो को शांत किया ,जो भटक गए थे ,गलत मार्ग पर अग्रसर थे, और स्वयं काे तथा दूसरों को अकारण कष्ट दे रहे थे ,यही कारण था कि बुद्ध के समय मैं एक नवीन तरह की क्रांति हुई, शांति व करुणा की क्रांति, जिसने युद्धाें को समाप्त किया, शांति का साम्राज्य स्थापित किया और मानव जीवन को नई दिशा दिखायी,
आज की विभीषिकाओं से जूझते मानव को सही राह दिखाने के लिए भगवान बुद्ध की उन्हीं शिक्षाओं पर चलने की आवश्यकता है जो उसे आतंक, हिंसा, युद्ध व नकारात्मक प्रवृत्ति के मार्ग से हटाकर शांति, सेवा, सुचिता के मार्ग की ओर ले चले, जो स्थिति वह समस्याएं भगवान बुद्ध के समय थी , वे आज भी है और पहले भी की तुलना में अधिक विकृत रूप में है ,काल की गति ने पुनः ऐसे ही दिव्य प्रयास की आवश्यकता हममें से प्रत्येक अनुभव कर सकता है,
आतंकवाद युद्ध दंगे आदि को देखकर ऐसा लगता है कि मानव के अंदर अब संवेदना ही नहीं बची, अब उसके अंदर इंसानियत ही नहीं रही, जिसके कारण उसे मानव कहा जा सके,
अब तो इंसान की हैवान बन गया है ,न तो उसे प्रकृति का ध्यान है और न ही प्रकृति में बसने वाले पशु ,पक्षियों, जीव -जंतुओं का, यहां तक कि अब तो मानव को अपना ही ध्यान नहीं है ,
अपने ही स्वार्थ ,लोभ, लालच में वह मानवता के अस्तित्व को गंवाने में लगा लग गया है ,
ऐसी परिस्थितियाें में भगवान बुद्ध की दी गयी सीख मनुष्य के लिए अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध होती नजर आ रही रही हैं ,
भगवान बुद्ध कहा करते थे कि मनुष्याें की महानता युद्ध को जीतने से नही वरन स्वयं पर विजय प्राप्त होने से प्रमाणित होती है ,
दूसरों पर बर्बरता दिखाकर कोई भी मनुष्य अपनी अंतरात्मा को, परमात्मा की ओर नहीं ले जा सकता है ,यदि प्रत्येक व्यक्ति इसी करुणा के पथ का पालन करें तो मनुष्य को युद्ध एवं आतंकवाद की छाया से मुक्त किया जा सकता है ,
भगवान बुद्ध का बहुत लोकप्रिय और प्रसिद्ध संदेश है कि यथार्थ जगत में दुखों और पीड़ाओ को संघर्ष के जरिए नहीं ,मानसिक प्रत्यनाे के द्वारा ही दूर किया जा सकता है,
मनुष्य अन्य प्राणियों से इस आधार पर श्रेष्ठ है कि उसके पास बुद्धि है, विवेक है ,वह सोच समझ सकता है और अपनी सोच के अनुसार कुछ भी कर सकता है, जिस व्यक्ति की सोच जितनी परिपक्व होगी ,उसका जीवन उतना ही अधिक व्यवस्थित होगा, भगवान बुद्ध का यह भी कहना था कि सितार के तार को अधिक कसने पर अथवा उसे ढीला छोड़ने पर सितार में से बेसुरी आवाजें ही निकलती हैं ,
संगीत को जन्म देने के लिए उसे सम्यक रूप में उसे कसना आवश्यक होता है ,इसी प्रकार जीवन को भी सम्यक मार्ग पर ले जाने से ही जीवन के मर्म को समझा जा सकता है ,
भगवान बुद्ध ने दुख से मुक्ति के आठ उपायों को अष्टांगिक मार्ग कहा है ,जिनके नाम सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प ,सम्यक वाणी, सम्यक कंर्मात ,सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति एवं सम्यक समाधि है ,
आज बुद्ध की वाणी उनके कहे गए वचन व संदेश मानव जीवन के लिए उतनी ही प्रेरणाप्रद हैं,जितने वे सदियों पूर्व थे , जिन भगवान बुद्ध की वाणी सुनकर दुर्दांत दैत्य उंगलिमाल का जीवन बदल सकता है, बर्बर अधिपति अधिपति अज्ञात शत्रु और प्रजावत्सल सम्राट अशोक में बदलाव आ सकता है ,उनके जीवन व संदेश से प्रेरणा पाकर आज भी मानवता को नई सोच व नई दिशा दे पाना संभव है ,
देवेंद्र सैनी देव
(लेखक चिंगारी बिजनौर टाइम्स ग्रुप मैं वरिष्ठ पत्रकार हैं.ये विचार लेखक के अपने हैं)
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