Friday, August 14, 2020

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की उत्कृष्ट और अनुकरणीय पहल हर देश का एक भूगोल है, पर भारत अनमोल है स्वामी चिदानन्द सरस्वती

अखंड भारत संकल्प दिवस
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की उत्कृष्ट और अनुकरणीय पहल
   हर देश का एक भूगोल है, पर भारत अनमोल है
  स्वामी चिदानन्द सरस्वती   
 
ऋषिकेश, । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उनके अनुषांगिक संगठनों द्वारा प्रतिवर्ष 14 अगस्त को ’अखंड भारत संकल्प दिवस’ मनाया जाता है। उनका मानना है कि 15 अगस्त को हमारा देश आजाद हुआ था परन्तु 14 अगस्त को हमें अपनी मातृभूमि के विभाजन का दंश भी झेलना पड़ा था इसलिये आज के दिन हर भारतवासी संकल्प लें कि हम रंग, रूप, वेश-भूषा, धर्म और जाति से भले ही अलग-अलग हो परन्तु हम सब एक है और भारत माता की संतान हैं।
इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की अखंड भारत संकल्प दिवस की पहल उत्कृष्ट और अनुकरणीय पहल है। स्वामी जी ने कहा कि भारत, विविधता में एकता की संस्कृति वाला राष्ट्र है और अखंड भारत की संकल्पना के लिये आपस में विश्वास का होना अति आवश्यक है जिस प्रकार व्यक्ति को जीने के लिये श्वास की जरूरत होती है, उसी प्रकार समाज को जोड़ने के लिये विश्वास की जरूरत होेती है, विश्वास वह सीमेन्ट है जिससे समाज के लोग आपस में जुड़े रहते हैं। समाज जुड़ता है और समाज जुड़ा रहेगा तभी अखंड भारत का निर्माण होगा।
स्वामी जी ने कहा कि भारत, दुनिया का एक हिस्सा जरूर है परन्तु भारत केवल जमीन का एक टुकड़ा नहीं बल्कि जीता जागता राष्ट्र है। भारत, केवल भारत नहीं बल्कि भारत माता है। हर देश का एक भूगोल है, पर भारत अनमोल है। यहां की संस्कृति, संस्कार, दिव्यता और भव्यता यहां के मूल्य इसे बहुमूल्य बनाते हैं। उन्होने कहा कि भारत, केवल अपने लिये प्रगति नहीं करता है बल्कि दुनिया की प्रगति में भी अपना अमूल्य योगदान देता है। भारत की संस्कृति हमें चाहे कोई बड़ा हो या छोटा सभी के साथ भाव से रहना सिखाती है। आज हमें ऐसे समाज की जरूरत है जहां व्यक्ति एक-दूसरे के साथ खड़े रहें, वह भी दूसरों को गिराने के लिये नहीं बल्कि हमेशा मदद करने के लिये। हमें समाज में ऐसे भावनात्मक पुलों का निर्माण करना होगा जो जात-पात की दरारों को भरें, ऊँच-नीच की दीवारों को तोडें और जो दिलों से दिलों को जोड़ें और जो दूसरों के दर्द को समझे। किसी के काम जो आये उसे इन्सान कहते है, पराया दर्द अपनायें उसे इन्सान कहते है। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति है हमारा समाज ऊँच-नीच की संस्कृति में विभाजित न हो बल्कि सर्वे भवन्तु सुखिनः आदि सूत्रों और मंत्रों से जुड़ा रहें। सब सुखी और स्वस्थ रहें, द्वेष भाव से नहीं बल्कि निजता के भाव से जुुड़े रहें। अखंड और सशक्त भारत  के साथ हमारा राष्ट्र आत्मनिर्भर भारत बनें, स्वच्छ, सुन्दर, समृद्ध और समुन्नत भारत बने।
भारत, विविध संस्कृतियों वाला राष्ट्र है, भारत की विविधता ही उसकी शक्ति है इसलिये भारत के पास विकास की अपार सम्भावनायें है और इसे बनायें रखना हम सब की साझा जिम्मेदारी है। हम सब भारतीय हंै और भारतीयता हमारी पहचान है। वैसे तो हमारा राष्ट्र विभिन्न संस्कृतियों से युक्त है जिसकी वजह से पूरे विश्व में हमारी एक उत्कृष्ट पहचान है। भारत में अलग-अलग संस्कृति और भाषायें है फिर भी हम सब एकता के सूत्र में बंधे हुये हैं। हमारे देश की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखना हम सभी का परम कर्तव्य है। अखंडता से तात्पर्य सीमाओं की अखंडता ही नहीं बल्कि आपसी पे्रम और सौहार्द्रता से भी है। मानव-मानव एक समान- सबके भीतर है भगवान। मानव मात्र की एकता और सार्वभौमिकता ही शांति का मार्ग प्रशस्त करती है भारत के नागरिक चाहे किसी भी मजहब के हों वे भारतीय हैं, वे भारत माता का सम्मान करें। राष्ट्र देवों भव के भाव से जियें भारत अहिंसा और शान्ति की भूमि हैं। हम सभी नागरिक आपस में मिलकर रहेंगे, सभी के साथ समान व्यवहार करेंगे, आपसी प्रेम और भाईचारा बनाकर रखेंगे तो  निश्चित रूप से भारत की अखंडता अक्षुण्ण रहेगी, आईये यही संकल्प आज हम सभी लेते हैं।

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