दतिया | केारोना संकट ने बहुत सारे लोगों की जिंदगी बदल डाली है। बेरोजगारी के चलते कामकाजी नौजवानों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया था। लॉकडाउन के कारण घर से बाहर निकल नहीं सकते थे और पेट भरने के लिए कुछ करना भी था।
इन्हीं में एक हैं अट्ठाईस वर्षीय अनिल अहिरवार जिनका मध्य प्रदेश के दतिया जिले के छोटे से गांव इकारा में टैंट का कारोबार था। जो सरकारी योजना के लोन से खड़ा किया था और अच्छी कमाई दे रहा था। लेकिन काम धंधा बंद होते ही अनिल ने अपने परिवार की जिम्मेदारी के लिए कपड़े सिलाई का काम शुरू कर दिया। उनके टैंट के धंधे में 6 कामगार लगे थे, जिनके सामने भूखे मरने की नौबत आ गई। उनका भी अनिल सहारा बने।
उनकी मां कुसुमा ने उनका साथ दिया। उन्होंने ठान लिया कि खुद के साथ कामगारों की भी तकदीर और तस्वीर बदल देंगे। कपड़ों की सिलाई से इसे संभव करेंगे। अनिल ने अपनी मां के साथ मिलकर गांव में ही एक छोटी-सी सिलाई की दुकान खोल ली। इस दुकान से अपना खर्चा चलाने के साथ-साथ कामगारों का भी खर्च उठाया।
हालात सामान्य होते ही अनिल ने फिर से टैंट का कारोबार शुरू कर दिया है, पर कोरोना जैसी आपदा ने उनके घर को सिलाई दुकान के रूप में दोहरी कमाई का विकल्प दे दिया, जहां की मालकिन उनकी मां कुसुमा हैं। ऐसे कई कर्मठ लोग हैं, जिन्होंने आपदा में भी रोजी-रोटी का पुख्ता जुगाड़ किया। अनिल अपने कारोबार में लौट आए हैं। सब ठीक चल रहा है। वह कामगारों को भी काम दे रहे हैं। अनिल कहते हैं कि कोरोना के कारण आजीविका का संकट खड़ा हो गया था। लेकिन उन्होंने दूसरे काम से संकट से पार पा ली।
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