Thursday, August 13, 2020

लॉकडाउन में हुए नुकसान की भरपाई, कड़कनाथ से बढ़ाई आय

आपदा में अवसर ढंूढ़ कड़कनाथ से की भरपूर कमाई, केवलारी के कड़कनाथ ग्वालियर, झांसी, अशोकनगर तक पहुंचे

दतिया |  केारोना के कारण लॉकडाउन से देश में उद्योग-धंधों के साथ मुर्गापालन एवं खेती का काम भी प्रभावित हुआ, लेकिन कड़कनाथ पालन इस विपरीत समय में भी किसानों के लिए लाभ का धंधा बना रहा। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और पोषक तत्वों के कारण बहुमूल्यवान पारंपरिक मुर्गा प्रजाति के कड़कनाथ का एक बार पालन शुरू कर किसान सालों साल मुनाफा कमाते हैं। कड़कनाथ बेचने बाजार तलाशने की जरूरत भी नहीं रहती। लोग खुद ही इसे ले जाते हैं।

    मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित केवलारी निवासी बादाम सिंह यादव ऐसे ही लोगों में शामिल हैं। लॉकडाउन की वजह से खेती में नुकसान उठाने वाले इस किसान ने कड़कनाथ के जरिए कृषि क्षेत्र में नई मुर्गापालन क्रांति खड़ी कर दी।

जब मार्च में लॉकडाउन की घोषणा हुई थी, तभी बादाम ने तय किया कि वे उस खाली समय का बखूबी इस्तेमाल करेंगे। उन्होंने कड़कनाथ के उत्पादन पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया। कड़कनाथ दिल और डायबिटीज के रोगियों के लिए बेहतरीन दवा तथा इसमें चर्बी और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होने, कैल्शियम, फास्फोरस और हीमोग्लोबिन से भरपूर होने की वजह से कड़कनाथ की मांग ज्यादा है। कोरोना का असर कड़कनाथ पर नहीं पड़ा।

    लॉकडाउन के बावजूद बादाम ने कड़कनाथ को अवसर में बदल डाला। कड़कनाथ की बिक्री बढ़ाने के लिए काफी सोच-विचार करने के बाद बादाम को एक युक्ति सूझी और उन्होंने कड़कनाथ के उत्पादन और फायदों से लोगों को अवगत कराना शुरू कर दिया। जगह-जगह उन्होंने लोगों केा अपना मोबाइल नम्बर दिया और आग्रह किया कि कोई कड़कनाथ का स्वाद लेना चाहता हो, तो बताएं। फिर क्या था, कुछ ही दिनों में लोगों के आर्डर आने लगे और बिक्री होने लगी।

    बादाम के पोल्ट्री फार्म में उत्पन्न कड़कनाथ दतिया जिले के दतिया, इंदरगढ़, सेवढ़ा समेत ग्वालियर, अशोकनगर एवं झांसी तक गया। बादाम को हर साल कड़कनाथ और उसके अंडों से लगभग दो लाख रूपये की कमाई हो जाती है। लेकिन कोरोना संकट में उन्होंने अल्प समय में एक लाख रूपये की कमाई कर डाली।

आत्मा परियोजना के अनुदान और तकनीकी मार्गदर्शन से व्यावसायिक रूप से शुरू हुए कड़कनाथ के कारोबार से बादाम ने केवलारी और दतिया में मकान बनवा लिया। उनकी आजीविका अधिकांशतः कड़कनाथ की कमाई से ही चल रही है। बादाम का कहना है कि कोरोना के कारण सब कुछ बदल गया है। सोशल डिस्टेंसिंग बनाना आवश्यक है, इसलिए अब गांव में ही कड़कनाथ पालन और खेती बाड़ी करेंगे। आत्मा परियोजना के विकासखंड तकनीकी प्रबंधक श्री कैलाश सिंह बताते हैं कि किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कड़कनाथ पालन शुरू कराया था। यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहा।

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