भारत-कनाडा आईसी इम्पैक्ट्स वार्षिक अनुसंधान सम्मेलन में द्विपक्षीय सहयोग को नए स्तर पर ले जाने पर चर्चा की गई
प्रोफेसर आशुतोष शर्मा: “दोनों देशों के बीच सहयोग को एक अलग स्तर पर ले जाने के तरीकों का पता लगाया जाना चाहिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम साइंसेज और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में नए शोध की खोज करने के अलावा दोनों के बीच विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी, प्रौद्योगिकी परिनियोजन, विज्ञान में विविधता और स्कूलों में एसटीईएम के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ तरीके साझा किए जा सकते हैं
डा. रेणु स्वरूप ने कनाडा सरकार और उसके संस्थानों के साथ नए सहयोग और नेटवर्किंग शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया
आईसी इम्पैक्ट के परिणामस्वरूप दोनो देशों के बीच 1,129 प्रकाशन, 63 द्विपक्षीय अनुसंधान परियोजनाएं, 24 प्रौद्योगिकी परिनियोजन, 352 भागीदारी और 29 पेटेंट और प्रौद्योगिकी प्रयोग हुए हैं
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने भारत और कनाडा के बीच विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “दोनों देशों के बीच सहयोग को एक अलग स्तर पर ले जाने के लिए तरीकों का पता लगाया जाना चाहिए। इसमें विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी , प्रौद्योगिकी परिनियोजन, विज्ञान में विविधता, और स्कूलों में एसटीईएम के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ अभ्यास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम साइंसेज और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में नई खोज के क्षेत्र में साझेदारी को बढ़ावा दिया जा सकता है।
उन्होंने भारत की नई एसटीआई नीति पर आयोजित सम्मेलन से भी सभी लोगों को अवगत कराया और महत्वपूर्ण हितधारकों में से एक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय संपर्क की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस तरह के संपर्क को मजबूत करने के लिए कनाडा के विचारों और सुझावों का स्वागत किया।
इस सम्मेलन का आयोजन वस्तुतः 6 अगस्त, 2020 को भारत-कनाडा सेंटर फॉर इनोवेटिव मल्टीडिसिप्लीनरी पार्टनरशिप टू एक्सेलेरेट कम्युनिटी ट्रांसफॉर्मेशन एंड सस्टेनेबिलिटी (आईसी इम्पैक्ट्स ) द्वारा किया गया था।
आईसी इम्पैक्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रोफेसर नेमी बंथिया ने बताया कि आईसी इम्पैम्क्ट परिणामस्वरूप दोनो देशों के बीच 1,129 प्रकाशन, 63 द्विपक्षीय अनुसंधान परियोजनाएं, 24 प्रौद्योगिकी परिनियोजन, 352 भागीदारी और 29 पेटेंट और प्रौद्योगिकी प्रयोग हुए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि लगभग 200 प्रतिभावान भारतीय छात्र और बड़ी संख्या में कनाडाई छात्र, जिनमें से अधिकांश मास्टर्स, पीएचडी और पोस्ट-डॉक्टरल फेलो हैं को आईसी-इम्पैक्ट के तहत प्रशिक्षित किया गया था। इस साझेदारी के तहत कार्यान्वित परियोजनाओं के परिणामस्वरूप 7 स्टार्ट-अप और देश के युवा स्नातकों के लिए कई नौकरियों के अवसर पैदा हुए।
डीबीटी के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप ने कनाडा सरकार और उसके संस्थानों के साथ नए सहयोग और नेटवर्किंग शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। कनाडा के प्राकृतिक विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर एलेजांद्रो एडेम ने भी क्वांटम विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लेकर स्वास्थ्य विज्ञान तक के अनुप्रयोगों में संयुक्त सहयोग के लिए उत्साह व्यक्त किया।
सम्मेलन के उद्घाटन के बाद आयोजित गोलमेज बैठक में, डीएसटी-डीबीटी-आईसी –इम्पैक्ट्स कार्यक्रम के तहत द्विपक्षीय गतिविधियों को आगे बढ़ाने पर विस्तृत प्रस्तुतियाँ दी गईं। डीएसटी के सलाहकार और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रमुख एस के वार्ष्णेय ने विज्ञान के ऐसे नए उभरते क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान के बारे में प्रकाश डाला, जिनका समसामयिक सामाजिक विषयों के सदंर्भ में अनुप्रयोग किया जा सकता है। इसमें विज्ञान में महिलाओं की पुरुषों के समान बराबर भागीदारी से जुड़े भारतीय कार्यक्रमों और विज्ञान में उद्यमिता का भी उल्लेख किया गया जिसमें दोनों देशों के बीच सहयोग विकसित किया जा सकता है।
सम्मेलन में आईसी इम्पैक्ट बोर्ड के पीठासीन अधिकारी श्री बरज दहन, कनाडा में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया, डीएसटी के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा, डीएसटी के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डा रेणु स्वरूप, ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रोफेसर सांता ओनो, आईसी इम्पैक्ट के विज्ञान विभाग के निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रोफेसर नेमी बंथिया, कनाडा के प्राकृतिक विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष अलेजांद्रो ने सम्मेलन के उद्धाटन सत्र में वर्चुअल माध्यम से हिस्सा लिया। सम्मेलन में भारत और कनाडा की आरे से करीब 200 प्रतिभागियों ने भाग लिया
डीएसटी आईसी इम्पैक्ट के साथ अनुसंधान के क्षेत्र में 2013 से सहयोग कर रहा है। इस साझेदारी का उद्देश्य दोनों देशों में समुदाय की आवश्यकताओं के समाधान के लिए सहयोग करना है।
आईसी-इम्पैक्ट के तहत दोनों देशों के बीच अनुसंधान सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में हरित इमारतें और स्मार्ट शहर हैं; आग के दौरान इमारतों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के उपाय ; एकीकृत जल प्रबंधन और सुरक्षित और स्थायी बुनियादी ढांचा तथा जल जनित और संक्रामक रोगों से उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याएं।
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