हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले गर्म पानी के सोने वायुमंडल में बड़ी मात्रा में वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं
हिमालय क्षेत्र में विभिन्न तापमान और रासायनिक गुण वाले ऐसे करीब 600 सोते हैं
नई दिल्ली, ज्वालामुखी विस्फोटों, भूगर्भीय चट्टानों और भू-तापीय प्रणाली के माध्यम से पृथ्वी के आंतरिक भाग से वायुमंडल में उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस वैश्विक कार्बन चक्र में योगदान करती है जो पृथ्वी पर छोटे और लंबे समय तक जलवायु को प्रभावित करती है। हिमालय क्षेत्र में विभिन्न तापमान और रासायनिक स्थितियों वाले लगभग 600 गर्म पानी के सोते हैं। क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु परिवर्तन तथा भूगर्भीय चट्टानों के खिसकने से होने वाले गैस उत्सर्जन की प्रक्रिया में इनकी भूमिकापरग्लोबल वार्मिंग का आकलन करते समय विचार करने की आवश्यकता है।हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में लगभग 10,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले भूगर्भीय सोतेकार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) से समृद्ध पानी की निकासी दिखाते हैं। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, के तहत एक स्वायत्त संस्थान, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की ओर से इसका पता लगाया गया था। इस इंस्टीट्यूट को इन सोतों से उत्सर्जित होने वाली गैस की जांच करने की विशेषज्ञता है। अनुमानित कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन (तरल पदार्थ, विशेष रूप से पानी या जलीय घोल से गैसों के अलग होने का) का प्रवाह वायुमंडल में लगभग 7.2 × 106 एमओएल/ वर्ष है।
वैज्ञानिक पत्रिका “एनवायरनमेंटल साइंस एंड पॉल्यूशन रिसर्च” में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि इन गर्म पानी के सोतों में कार्बन डाइऑक्साइट मैग्मा और ग्रेफाइट के ऑक्सीकरण के साथ-साथ हिमालय क्षेत्र के कोर में मौजूद कार्बोनेट चट्टानों के मेटामोर्फिक डेकार्बोनाइजेशन से प्राप्त होता है। इन सोतों के अधिकांश भूतापीय जल में बड़े पैमाने पर वाष्पिकरण होता है, जिसके बाद सिलिकेट चट्टानों का अपक्षय होता है। आइसोटोपिक विश्लेषण से इस सोतों के अन्य स्रोतों का पता चलता है।
वैज्ञानिकों की टीम ने गढ़वाल में हिमालय के प्रमुख फॉल्ट क्षेत्रों से 20 गर्मपानी के इन सोतों से एकत्र किए गए पानी के नमूनों का विस्तृत रासायनिक और आइसोटोप विश्लेषण किया। आइसोटोपिक माप (कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिकों के भीतर कुछ स्थिर आइसोटोप और रासायनिक तत्वों की प्रचुरता की पहचान) जैसे कि विघटित अकार्बनिक कार्बन (सीडी13सीडीआईसी), और ऑक्सीजन (O18O) के साथ-साथ सभी नमूनों का विश्लेषण किया गया।
उन्होंने पाया कि भूतापीय वसंत जल में उच्च विघटित अकार्बनिक कार्बन का 13सीडीआईसीअनुपात (-8.5 ‰ से + 4.0 + VPDB) होता है, और प्रमुख आयनों के बीच, बाइकार्बोनेट (HCO3−) 1697 से 21,553 μEq / L के बीच होता है; क्लोराइड और सोडियम 90 से 19,171 μEq/L और 436 से 23181 μEq / L के बीच होता है। सोतों के जल में Cl और Na + की उच्च सांद्रता ने इनके गहरे स्रोतों का संकेत देती है।
टीम द्वारा किए गए सिमुलेशन अध्ययनों से पता चलता है कि इन सोतों में प्रति वर्ष जल से वायुमंडल में ~ 7.2 × 106molकार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन की क्षमता है। इस अध्ययन से हिमालय क्षेत्र के गर्म पानी के सोतों से प्रति वर्ष वायुमंडल में उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा का अनुमान लगाना आसान हो जाता है।
पृथ्वी के वायुमंडल में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड के प्रवाह का आकलन करने के लिए इस तरह के प्रक्रिया को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
चित्र . जल से कार्बन डाइऑक्साइड के अलग होने की प्रक्रिया। उत्तर पूर्वी गढ़वाल क्षेत्र में वल्दिया से गर्म पानी के सोतों की भौगोलिक स्थिति से जुड़े डेटा के अध्ययन क्षेत्र की मैपिंग(1999); बेकर एट आल से लिया गया बी शिमैटिक डी गैसिंग मॉडल के स्टडी क्षेत्र का चित्रण (2008)। सी कैडवेल ऐट आल की पृष्ठभूमि वाला अध्ययन क्षेत्र (2013)
प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.1007/s11356-020-07922-1)
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